दिल्ली के एक busy मोहल्ले में, सोलह साल का आरव अपने बिस्तर पर बैठा था, फोन को घूर रहा था।
स्क्रीन पर notifications का मेला लगा था
स्कूल के group chats में board exams की बातें,
Instagram पर दोस्तों की posts जो दिखती थीं जैसे उनकी जिंदगी perfect हो,
और science project की deadline जो सिर पर चढ़ी आ रही थी।
आरव का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, पर इस बार खुशी से नहीं—एक अजीब सी घबराहट थी जो उसके सीने में घर कर रही थी।
आरव को घबराहट का अहसास पहले भी हुआ था, पर इस बार ये एक तूफान सा लग रहा था जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
आरव का घर एक middle-class परिवार का था,
जहाँ पढ़ाई में नंबर वन आने का pressure उतना ही common था जितनी सुबह chai की खुशबू।
उसके माँ-बाप, दोनों software engineers, चाहते थे कि आरव IIT का entrance exam crack करे और उनकी तरह बने।
लेकिन जब भी आरव अपने future के बारे में सोचता—JEE coaching, board exams, college admissions—उसके हाथों में पसीना छूटने लगता और दिमाग एक ही सवाल में घूमता:
अगर मैं fail हो गया तो? अगर मैंने सबको निराश कर दिया तो?
एक शाम,
जब आरव स्कूल से थक-हारकर आया, उसकी माँ प्रिया ने देखा कि वो खाने में बस खाना कुरेद रहा था।
“बेटा, क्या बात है? तूने तो पराठा भी पूरा नहीं खाया,” प्रिया ने प्यार से पूछा।
आरव थोड़ी देर चुप रहा। उसके घर में दिल की बात करना common नहीं था।
Feelings को चुपके से handle करना सिखाया गया था, न कि खुलकर बात करना। पर अब वो बोझ सह नहीं पा रहा था।
“माँ, पता नहीं… मुझे हर वक्त डर लगता है। जैसे मैं सब कुछ में डूब रहा हूँ।”
प्रिया का चेहरा नरम पड़ गया। उसने अपने teenage वक्त याद किया, जब उस पर भी अच्छा करने का pressure था।
पर अब तो बात और बड़ी थी—social media, हर वक्त दूसरों से comparison, और COVID के बाद की दुनिया ने बच्चों की जिंदगी को एक puzzle बना दिया था।
“चलो, इसका कुछ करते हैं साथ में,” उसने कहा।
अगले दिन, प्रिया आरव को स्कूल की counselor, मिस शालिनी, से मिलाने ले गई।
आरव को लगा ये कुछ boring होगा—किसी अनजान aunty से अपने डर के बारे में बात करना?
ये तो वैसा ही था जैसे teacher को बोलना कि homework नहीं किया!
पर मिस शालिनी का office एकदम अलग था—दीवारों पर mindfulness के quotes, एक छोटा सा Buddha statue, और एक शांति वाला vibe।
उन्होंने सीधे सवाल नहीं किए। बस आरव को एक stress ball दिया और कहा, “इसे पूरी ताकत से दबा। देखते हैं तू इसे फोड़ सकता है कि नहीं।”
आरव हँस पड़ा,
और उसके कंधों का बोझ थोड़ा हल्का लगा।
अगले एक घंटे में, मिस शालिनी ने उसे कुछ ऐसे तरीके बताए जो उसकी जिंदगी में काम आ सकें।
उन्होंने 4-7-8 breathing technique सिखाई—चार second तक साँस खींचो, सात second तक रोको, और आठ second में छोड़ो।
“ये जैसे तेरे दिमाग के panic button को थोड़ी देर के लिए बंद कर देता है,” उन्होंने कहा।
आरव ने try किया, और पहले तो थोड़ा अजीब लगा, पर धीरे-धीरे उसकी धड़कन normal हुई।
मिस शालिनी ने एक और चीज बताई—journaling।
“जो भी तेरे दिमाग में घूम रहा है, उसे लिख डाल। सोचना मत कि कोई पढ़ेगा।
ये बस तेरे लिए है।”
उसी रात, आरव ने एक notebook में लिखा: मुझे डर है कि मैं कभी काफी अच्छा नहीं बन पाऊँगा। मुझे डर है कि कोई मुझे समझेगा नहीं।
अपने डर को कागज पर देखने से वो खत्म तो नहीं हुए, पर लगता था जैसे वो इतने बड़े नहीं रहे।
दिल्ली में mental health के बारे में बात करना आसान नहीं था—लोग चुपके से इसके बारे में बोलते थे, खुलकर नहीं।
आरव के दोस्त भी समझने की कोशिश तो करते, पर उन्हें पूरा समझ नहीं आता।
“अरे, chill कर यार,” उसका best friend रोहन एक दिन बोला। “Exams ही तो हैं, जिंदगी थोड़ी है।”
आरव ने हाँ में सिर हिला दिया, पर ये बातें दिल तक नहीं पहुँची। उसे कुछ और चाहिए था।
मिस शालिनी ने बताया कि दिल्ली में एक NGO है, Sangath, जो teens के लिए free mental health workshops करता है।
आरव ने सोचा चलो, देखते हैं, शायद bore ही हो।
पर जब वो वहाँ गया, तो वहाँ उसकी तरह कई और बच्चे थे—कोई marks के लिए परेशान, कोई घरवालों के expectations से, कोई social media के pressure से। Workshop की facilitator, डॉ. नेहा, एक young psychologist थी।
उसने अपनी कहानी बताई कि college में उसे भी anxiety हुई थी।
“ये कोई कमजोरी नहीं है,” उसने कहा।
“तेरा दिमाग तुझे बचाने की कोशिश कर रहा है, बस कभी-कभी थोड़ी ज्यादा कोशिश कर देता है।”
Workshop में आरव को mindfulness apps के बारे में पता चला, जैसे Headspace और एक Indian app, Mindhouse, जिसमें Hindi और Punjabi में meditations थीं।
उसने progressive muscle relaxation भी सीखा—अपने muscles को पहले जोर से भींचकर छोड़ना, जिससे body को आराम मिले।
घर पर, वो रात को सोने से पहले ये try करता, और उसके कंधों की गाँठें धीरे-धीरे खुलने लगीं।
आरव के माँ-बाप भी इसमें शामिल हो गए।
प्रिया ने teen anxiety के बारे में पढ़ा और छोटी-छोटी चीजें शुरू कीं—जैसे Sunday को लोधी गार्डन में साथ टहलना, जहाँ वो पढ़ाई के अलावा किसी भी चीज के बारे में बात करते।
आरव के पापा, राजेश, जो हमेशा थोड़ा चुप रहते थे, उन्होंने अपनी पुरानी कहानियाँ सुनानी शुरू कीं—जैसे कि कैसे वो Class 12 में एक बार maths में fail हो गए थे।
“मैं भी जी गया,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।
“तू भी जी लेगा।”
एक दिन, आरव Instagram पर एक page देखा जो The Mind Clan नाम से था,
दिल्ली में चलता था।
उनके posts में anxiety के बारे में मजेदार memes थे—जैसे एक cartoon जिसमें दिमाग रात के 2 बजे overthinking करता है—
और free helplines के numbers भी थे, जैसे iCall और Vandrevala Foundation।
आरव ने वो numbers अपने फोन में save कर लिए, क्या पता कब काम आ जाएँ।
कुछ महीने गुजरे, और आरव की घबराहट पूरी तरह खत्म तो नहीं हुई—ये कोई switch नहीं था जो बंद हो जाए।
पर अब वो एक लहर सी लगती थी, जिसे वो संभाल सकता था। उसने रोहन से दिल की बात share करनी शुरू की, और रोहन ने भी कहा कि उसे भी कभी-कभी pressure होता है।
दोनों ने फैसला किया कि साथ में पढ़ेंगे, पर marks के चक्कर में नहीं पड़ेंगे।
आरव ने स्कूल में एक photography club भी join किया, जहाँ वो अपने फोन से दिल्ली की सड़कों के कुत्तों और बारिश के बाद के आसमान की तस्वीरें खींचता।
इससे उसका ध्यान उसके डर से हटा और कुछ और सोचने को मिला।
एक शाम, जब आरव अपने journal में लिख रहा था, उसने कुछ नया लिखा: मुझे अब भी कभी-कभी डर लगता है, पर मैं अकेला नहीं हूँ।
और अभी के लिए ये काफी है। बाहर, दिल्ली का शोर चल रहा था—auto के horn, रेहड़ी वालों की आवाजें।
आरव ने एक लंबी साँस ली, उसे रोका, और छोड़ दिया। आज उसके अंदर का तूफान थोड़ा शांत था।
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