हाल ही में आमिर खान और जेनेलिया देशमुख की फिल्म सितारे ज़मीन पर का ट्रेलर लॉन्च हुआ और देखते ही देखते इंटरनेट पर बवाल मच गया।

सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातें हो रही हैं – कुछ लोग ट्रेलर की तारीफ कर रहे हैं, तो कई इसे बायकॉट करने की मांग कर रहे हैं।

लेकिन इन सबके बीच एक बहुत जरूरी बात कहीं खो सी गई है – और वो है बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य

हमारे ब्लॉग का मकसद राजनीति या विवाद में पड़ना नहीं है।

हम बस एक ऐसी बात पर ध्यान दिलाना चाहते हैं जो वाकई मायने रखती है – बच्चों की सोच, उनका व्यवहार, और उनकी भावनात्मक ज़रूरतें

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Image Courtesy: News 18 (https://www.news18.com/explainers/why-is-boycott-sitaare-zameen-par-trending-on-x-9336008.html)

🎬 स्क्रीन से समाज तक: ट्रेलर ने क्या दिखाया

इस फिल्म में ऐसे बच्चों की कहानी दिखाई गई है जो थोड़े “अलग” हैं। हो सकता है वो पढ़ाई में ध्यान न लगा पाएं, जल्दी गुस्सा हो जाएं, या दूसरे बच्चों जैसे न हों। लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि उनके अंदर कोई कमी है?

कई बार हम बिना सोचे समझे बच्चों को “शरारती”, “बदमाश” या “लापरवाह” कह देते हैं। जबकि असल में वो किसी भीतरूनी परेशानी से जूझ रहे होते हैं – जैसे कि:

🧠 बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य – एक अनकही लड़ाई

WHO के अनुसार, हर 7 में से 1 किशोर को किसी न किसी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है।

भारत में ये आंकड़े और भी ज्यादा हैं। फिर भी, मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना जैसे एक taboo बन चुका है।

समस्या ये नहीं कि इलाज नहीं है। असली दिक्कत है:

  • जानकारी की कमी – बहुत से माता-पिता और टीचर ये नहीं जानते कि बच्चों का व्यवहार मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हो सकता है।

  • सुविधाओं की कमी – अच्छे काउंसलर और चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट हर जगह नहीं मिलते।

  • स्वीकार करने की हिम्मत – हम अक्सर “लोग क्या कहेंगे” से डरते हैं, और बच्चे चुपचाप सब सहते हैं।

ऑटिज़्म को समझें – मिथक तोड़ें, न्यूरोडायवर्सिटी को अपनाएं

🏫 लेबल्स नहीं, समझ चाहिए

हम बच्चों को जल्दी से “धीमा”, “नाकारा” या “बिगड़ा हुआ” बोल देते हैं। लेकिन कभी सोचा है, वो ऐसा क्यों कर रहे हैं?

क्या बच्चा परेशान है?
उसे खुद को समझाने में दिक्कत हो रही है?
क्या वो बस चाहता है कि कोई उसे सुने?

बच्चों को इमोशनल सपोर्ट देना उन्हें कमजोर नहीं बनाता – बल्कि उन्हें मजबूत बनाता है।

❤️ आज के समय में ये बात और भी ज़रूरी क्यों है

कोविड के बाद की जिंदगी, पढ़ाई का प्रेशर, सोशल मीडिया का असर – ये सब मिलकर बच्चों के दिमाग और दिल पर गहरा असर डालते हैं।

ऐसे में अगर कोई फिल्म हमें सोचने पर मजबूर कर दे, तो हमें उस मौके को गंवाना नहीं चाहिए।

इस ट्रेलर को हम एक मौका मान सकते हैं – एक नई शुरुआत का, जहां हम:

  • बच्चों से बात करें

  • उन्हें जज किए बिना सुनें

  • जरूरत होने पर प्रोफेशनल हेल्प लें

  • टीचर्स को इस बारे में ट्रेन करें

  • स्कूल और घर को एक सेफ स्पेस बनाएं

🌱 विवाद नहीं, संवेदना चाहिए

हम ये नहीं कह रहे कि ट्रेलर में सब परफेक्ट है, या सबको फिल्म देखनी चाहिए।

लेकिन हम ये ज़रूर कह रहे हैं कि अगर ये ट्रेलर हमें बच्चों की मानसिक और इमोशनल ज़रूरतों पर सोचने को मजबूर करता है – तो बात बन सकती है।

मानसिक स्वास्थ्य कोई “बड़ा लोगों” का मुद्दा नहीं है। इसकी शुरुआत होती है बचपन से। और शुरुआत होती है हमसे