खून के सफर की वो कहानी, जिसने लाखों जानें बचाईं!
क्या कभी आपने सोचा है कि जिस ब्लड ट्रांसफ्यूजन से आज लाखों जानें बच रही हैं, उसका इतिहास कितना जोखिम भरा था?
यह कहानी है उस सफर की, जहाँ इंसान ने खून को सिर्फ शरीर में ही नहीं, बल्कि जान बचाने के लिए एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुँचाने की कोशिश की।
खून की खोज: जब वैज्ञानिकों ने रास्ते तलाशे
आज से सदियों पहले, 1628 में, अंग्रेज डॉक्टर विलियम हार्वे ने एक ऐसी खोज की जिसने विज्ञान की दुनिया बदल दी।
उन्होंने बताया कि खून हमारे शरीर में एक ही दिशा में बहता है—दिल से पूरे शरीर में और फिर वापस।
उनकी इस खोज ने एक नया सवाल खड़ा किया: “अगर खून शरीर में घूमता है, तो बीमार इंसान को खून देकर उसकी जान क्यों नहीं बचाई जा सकती?”
इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए 1667 में, फ्रांस के डॉक्टर जीन-बाप्तिस्ट डेनिस ने एक साहसिक कदम उठाया।
उन्होंने इंसान को भेड़ का खून चढ़ाया। कुछ लोगों ने सोचा कि यह एक क्रांतिकारी कदम है, पर यह प्रयोग बहुत खतरनाक साबित हुआ। कई जानें चली गईं और इस पर रोक लगा दी गई।
जब इंसान ने इंसान का साथ दिया
अगले 150 सालों तक यह प्रक्रिया ठप रही। फिर 1818 में, ब्रिटिश डॉक्टर जेम्स ब्लंडेल ने एक नई उम्मीद जगाई।
उन्होंने कहा कि सिर्फ इंसान का खून ही दूसरे इंसान को दिया जा सकता है।
उन्होंने एक ऐसा तरीका निकाला जहाँ खून देने वाला (डोनर) और लेने वाला (रिसीवर) एक ही कमरे में होते थे।
खून सीधे डोनर की नस से रिसीवर की नस में जाता था।
इस तरीके को “डायरेक्ट ट्रांसफ्यूजन” कहा गया।
यह इसलिए ज़रूरी था क्योंकि उस समय खून को जमने से रोकने का कोई तरीका नहीं था।
यह तरीका कुछ हद तक काम तो आया, पर फिर भी जान का खतरा बना रहा। कुछ मरीज बच जाते थे, तो कुछ मर जाते थे—पर क्यों, यह कोई नहीं जानता था।
इस रहस्य को सुलझाने में एक और सदी लग गई।
क्या आप जानना चाहेंगे कि इस रहस्य का पर्दाफाश कैसे हुआ?
हमारी अगली कहानी में हम जानेंगे उस महान खोज के बारे में जिसने ब्लड ट्रांसफ्यूजन को पूरी तरह सुरक्षित बना दिया।
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