THN: 07 मई 2021

जब से कोरोना ने मानवता के साथ मजे लेलो डॉट कॉम शुरू किया है, तब से लगभग हर रोज़ नए-नए रिश्ते बन रहे हैं| शादी वाले नहीं, बल्कि सीरियस कोरोना का इंसान के शरीर के किसी न किसी गुण या अवगुण के साथ रिश्ते की बात कर रहा हूँ| अब आज की ही खबर को ले लीजिये, जो ये बता रही है कि गंजे लोगों में सीरियस वाला कोरोना, जिसकी वजह से डेथ हो जाती है, का रिस्क ढ़ाई गुना ज्यादा है| अब इस सिचुएशन में ये कहना कि “रिस्क है तो इश्क   है”, काफी बोरिंग मजाक है|

देखिये, रिसर्च में कोई भी तथ्य को सिद्ध करने के लिए बहुत समय लगता है, और बहुत सारी रिसर्च करनी पड़ती है| ये कह रहे हैं कि एण्ड्रोजन हॉर्मोन कि वजह से एक ख़ास तरह का गंजापन होता है,जिसको एन्द्रोजेनिक गंजापन कहते है| और जिन लोगो में अन्द्रोगेनिक गंजापन है उसमे रिस्क ज्यादा है| आगे बढ़ने से पहले एक बात तय करते हैं कि अब हम गंजापन की जगह बाल्ड्नेस शब्द का इस्तेमाल करेंगे|

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ये रिस्क सिर्फ पुरुषों में ही नहीं बल्कि महिलाओं में भी है, जिनमे ये बाल्ड्नेस होती है| इस रिसर्च के लीडिंग साइंटिस्ट डॉ. एंडी गोरेन ने तो इस रिसर्च को गेम-चेंजर तक कह डाला है| खुद एक डॉक्टर, मेडिकल टीचर  होने के नाते, मैं उनके इस प्रयास की सराहना करता हूँ| लेकिन ये वक़्त बहुत ही नाजुक है| तो लोगो के डर को बहुत ज्यादा डरने से बचाना है| जैसे की ये रिसर्च अपने आप में शुरूआती है, इसलिए इसके रिजल्ट को स्वादानुसार नमक के साथ ही समझना जरुरी है|

दुनिया के सभी बाल्ड लोगो में से लगभग आधे लोगों में एन्द्रोजेनिक बाल्डनेस होती है|और ज्यादातर लोगो में ये ज्यादा उम्र में ही होता है| ज्यादा उम्र से आपको याद आया होगा कि कोरोना ज्यादा उम्र के लोगों में सीरियस अवतार में देखा जाता है|

दूसरी बात, ये रिसर्च फिलहाल थोड़ी संख्या में मरीजों को लेकर  की  गयी है, इसलिए इसको एक तरह का तथ्य मान लेना शायद डर का माहौल बनाएगा| सोचके देखो! अक्षय खन्ना को कैसा लगेगा? मजाक नहीं उड़ा रहा हूँ बल्कि आपको थोडा रिलैक्स करने की कौशिश कर रहा हूँ| वैसे अक्षय खन्ना मेरा फेवरिट है, क्योंकि मैं भी उसके जैसी जुल्फों का मालिक हूँ|

अभी तक इस बात पे तो बहुत रिसर्च उपलब्ध है कि कोरोना से ठीक होने के बाद काफी लोगों में बाल झड़ने की  समस्याएं पैदा हो रही है| लेकिन ये टेम्पररी तौर पर होता है, जो थोड़े समय बाद अपने आप ठीक भी हो जाता है|

आखिर में अगर डेनियल कह्नेमन,जो एक नोबल प्राइज विनर हैं, की किताब थिंकिंग,फ़ास्ट एंड स्लो का निष्कर्स समझे, तो यही कहूंगा कि हमें पता होना चाहिए कि बहुत सारी चीजें बिना सही रिसर्च के हमारी समझ से परे हैं| और इस वजह से हम उन बातों को भी तथ्य मानकर कदम उठाते हैं, जिनका फिलहाल शायद कोई महत्व नहीं है|

अगर कोरोना कि बात करें, तो कल शायद कोई ये भी कहे कि लेफ्ट हैंडेड लोगों में ज्यादा हो रहा है| लेकिन सही मायने में कोरोना उन सभी के लिए रिस्क है, जो इसको रोकने के लिए जरुरी कदम जैसे मास्क, हाथ धोना,डिस्टेंस और वैक्सीन इत्यादि को दरकिनार करता है| इसलिए हर एक ट्रेंडिंग न्यूज़ से घबराने की जरुरत नहीं| बस अपनी कॉमन सेंस से काम लीजिये|

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