जी हाँ, कुछ ऐसे ही टाइटल होते हैं आजकल के यूट्यूब, फेसबु, व्हाट्सप्प के नए अपडेट में|
ऐसे खतरनाकम,भयंकरम टाइटल वाली नोटीफीकेशन देखते ही हम तुरंत क्लिक करते हैं |
ये तुरंत क्लिक करने की भावना इसलिए आती है, क्योंकि हम सभी अपनी फॅमिली से प्यार करते हैं|
और कुछ दिमाग खराब आधी दुनिया का तो फ्री डाटा ने कर दिया है|
ज्यादा गर्मी आ गयी है हाथों की उँगलियों में|
इन्टरनेट दो धारी तलवार है जी|
इन यू-ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटीज से डिग्री लेने के बाद हम उन बातों को अपने घर में इम्प्लीमेंट करने की कोशिश करते हैं|
आगे पढ़ने से पहले एक पल के लिए रुकिए और सोचिये…………
क्या हम कुछ भी सच नहीं मान लेते हैं?
चलिए शुरू करने से पहले एक छोटा सा असल वाक़िया बताता हूँ|
जब हमारा बड़ा बेटा पैदा हुआ, तो मेरी माँ हमारे पास रहने आयी,
हालांकि गाँव के शांत वातारण से उन्हें लेके आना आसान नहीं था|
लेकिन उनके परिवार में न्यू एंट्री हुई है,
और उसका स्वागत दादी- नानी से बेहतर कौन कर सकता है|
पहले दिन माँ खाना बनाने लगी
और उन्होंने मुझसे पूछा कि तड़का कौन सी कढ़ाई में लगाते हो?
क्योंकि मेरी माँ की बहु पोस्ट-सेजेरियन आराम कर रही थी,
तो मैंने उनको एक चमकती चमचमाती नॉन-स्टिकी कढ़ाई की तरफ इशारा किया|
माँ ने कढ़ाई देखते ही बोला कि कम से कम बर्तनो को ढंग से तो धो लिया करो|
“ये देख कढ़ाई बिलकुल काली हो रखी है”|
मैं बहुत कोशिश के बाद भी उनको नॉन स्टिकी बर्तन का कांसेप्ट समझा नहीं पाया|
जैसे ही कुछ बोलता, माँ डांटना शुरू कर देती,तो मैंने भी उनको पुरानी लोहे की कढ़ाई दे दी|
बात यही ख़तम हो गई|
एक महीने के बाद मेरी माँ की बहु बोली कि आज खाना मैं बना देती हूँ|
लेकिन उनको अपनी नोन-स्टिकी कढ़ाई नहीं मिल रही थी,
जब ध्यान से देखा तो पाया कि पिछले एक महीने से माँ एक बर्तन पर बहुत मेहनत कर
रही थी, वो थी नोन-स्टिकी कढ़ाई|
उसमे वो खाना बिलकुल नहीं पकाती थी, लेकिन उसको हर रोज़ मांजती जरूर थी|
और इसका नतीजा ये निकला कि अब वो कढ़ाई नॉन-स्टिकी नहीं रही थी|
माँ ने टेफ़लोन की टफ़ परत की धज्जियां उड़ा दी थी|
क्योंकि माँ को टेफ़लोन की परत चिपकी हुई गन्दगी की तरह नज़र आती थी|
आज भी मैं ये वाकिया बड़े मजे से सुनाता हूँ |
कुछ महीने पहले आर्टिकल पढ़ रहा था|
जिसमे ये बताने की कोशिश की जा रही थी कि नोंस्टिकी बर्तनो में खाना पका के हम अपने
परिवार को प्यार के साथ-साथ जहरीले केमिकल भी खिला रहे हैं|
रहा नहीं गया इसलिए डिटेल में जानने की कोशिश की|
कल शाम को अचानक उस पुरानी कढ़ाई पर नज़र पड़ी,
जो अब देशी कढ़ाई हो चली थी और खुश थी|
तो मन में विचार आया कि क्यों ना आप सबसे शेयर की जाए|
कढाई नहीं बल्कि जानकारी|
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“ब्लॉग बड़ा है काफी,
उसके लिए पहले से ही मांगता हूँ माफ़ी”
1930 तक दुनिया में लोग खाना बनाने के लिए धातुओं के बर्तनो का इस्तेमाल करते थे,
लेकिन 1930 में टेफ़लोन कोटिंग वाले बर्तनो का आना शुरू हो गया|
पहले विकसित देश और बाद में पूरी दुनिया में इनकी डिमांड बढ़ने लगी,
क्योंकि इनको धोना आसान था,कम तेल या घी का इस्तेमाल और खाना चिपकता नहीं था|
और धीरे-धीरे नॉन-स्टिकी बर्तनो ने स्टेटस सिंबल का रूप लेना शुरू कर दिया|
इसके साथ-साथ वैज्ञानिकों ने भी टेफ़लोन पर रिसर्च करना शुरू कर दिया|
और बीते वक़्त के साथ ऐसा पाया जाने लगा कि
इनकी वजह से कई तरह की बीमारियों का ख़तरा काफी ज्यादा बढ़ने लग जाता है,
जैसे कि बांझपन, लिवर, थाइरोइड और आँतों की बिमारी, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा इत्यादि|
इनके अलावा महिलाओं में अंडकोषों का कैंसर (Ovarian Cancer) व् अन्य ट्यूमर का खतरा भी बढ़ जाता है|
यहां तक भी पाया गया है कि बच्चों को लगने वाली वैक्सीन्स के इफ़ेक्ट को भी कम करता है|
ये सब पढ़के अपने घर के नॉन-स्टिकी बर्तनो को बाहर का रास्ता मत दिखा दीजियेगा|
बस इस ब्लॉग को पूरा पढने तक रूक जाईये ज़रा सा|
नॉन-स्टिकी बर्तनो को ज्यादा तापमान पर रखा जाए तो उनमे से टेफ़लोन की कोटिंग से फ्यूम्स (भाँप) निकलती है|
इन फ्युमस में परफ्लूओरो-ओक्टेनिक (PFOA ) नाम का केमिकल निकलता है, जिसे C-8 भी कहा जाता है|
और ऐसा तब होता है जब हम बर्तन को खाली गरम करते हैं
(आमतौर पर बर्तन को अच्छे से गरम करके घी या तेल डाला जाता है)|
इस केमिकल के भांप तब ज्यादा निकलते हैं, जब बर्तन की टेफ़लोन कोटिंग टूट-फूट गयी हो या बर्तन को बहुत लम्बे समय से इस्तेमाल कर रहे हो|
इन फ्यूम्स की वजह से सरदर्द,छींक आना और फैफड़ों को भी नुक्सान पहुँचता हैं |
आपको ये बात जाननी भी जरुरी है कि परफ्लूओरो-ओक्टेनिक (PFOA) सिर्फ नॉन-स्टिकी बर्तनो में ही नहीं होता है,
बल्कि इलेक्ट्रिकल तार, वाटर-प्रूफ कपड़ों में भी ये केमिकल होता है|
क्योंकि इनमे फ्लोरिन का इस्तेमाल होता है,जिसकी वजह से इनपे दाग,पानी, जंग नहीं ठहरता है|
मतलब यह कि हम चारो तरफ से घिरे हुए हैं|
अगर में कार में की जाने वाली टेफ़लोन कोटिंग कि बात करूँ, तो शायद ज्यादा जल्दी समझ आएगा|
इसलिए सावधानी ही सर्वोत्तम सुरक्षा है|
ये कसम खाना, कि हम इनको इस्तेमाल ही नहीं करेंगे, वो ज्यादा सही नहीं है|
बल्कि आपको इन्हें सही और साइंटिफिक तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए|
ताकि इनका फायदा मिले नुक्सान नहीं|
“आइये जानते हैं कि क्या–क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?”
1.नॉन-स्टिकी बर्तन को खाली गरम ना करें|
जब भी नॉन-स्टिकी बर्तन में खाना बनाना है,उसमे घी या तेल पहले से ही डालकर गरम करें| क्योंकि थोड़ी देर खाली गरम करने से खतरनाक फ्यूम्स निकलना शुरू हो जाते हैं|
क्योंकि बर्तन में कुछ होगा तो वह तापमान को ज्यादा नहीं बढ़ने देता है|
(बचपन में कागज़ को बिना जले पानी गरम तो किया ही होगा)|
2.खाना मध्यम या धीमी आंच पर पकाएं|
इससे खाना भी प्यार से पकेगा और आपके परिवार को भी सिर्फ खाना ही मिलेगा ना कि केमिकल मिला खाना|
3.अपने किचन का वेंटिलेशन (हवा का दौरा) बनाएं रखें
ताकि फ्यूम्स का कम से कम असर पड़े|
एग्जॉस्ट फैन या खुली खिड़कियाँ आपकी मदद कर सकती हैं|
4.नॉन–स्टिकी बर्तनो को आराम से धोएं
अपने नॉन-स्टिकी बर्तनों को स्पॉन्ज और गरम पानी से धोएं और स्टील के स्क्रबर से ना धोएं| क्योंकि इससे टेफ़लोन कवरिंग में टूट-फूट हो जाती है|
इनके अलावा अपने बर्तनो को समय-समय पर चेक करते रहे और अगर बर्तन में नॉन-स्टिकी लेयर में ज़रा सी भी क्रैक नज़र आये,
तो उसे इस्तेमाल करना बंद कर दीजिये|
टेफ़लोन कोटिंग को भूलें,
तो आपके पास स्टील, लोहा,सिरेमिक जैसे बहुत सारे विकल्प है|
अगर आप नॉन-स्टिकी बर्तन खरीद सकते हो,
तो दुसरे विकल्प, जो ज्यादा सुरक्षित है, को भी खरीद सकते हो|
अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करने के बारे में सोचिये|
धन्यवाद
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