मैसूर की गलियों में, जहां हर सुबह मोगरे की खुशबू होती थी और शाम को मंदिर की घंटियाँ, वहीं रहती थी एक 14 साल की लड़की — मीरा।
मीरा बिल्कुल आम सी लड़की थी — थोड़ी शांत, थोड़ी सोचने वाली, और दिल में हज़ार ख्वाब लिए। उसे लोगों की तस्वीरें बनाना बहुत पसंद था, खासकर उनके चेहरे — अलग-अलग आँखें, होंठ, मुस्कान। उसके स्कूल के नोटबुक में मैथ और साइंस से ज्यादा स्केच बने होते थे।
लेकिन अब कुछ बदल गया था।
अब मीरा हर सुबह आईने के सामने खड़ी होकर खुद को देखने से कतराती थी। अपने घुँघराले बालों को बमुश्किल चोटी में बाँधती, अपनी गेहुँई त्वचा को देखकर मायूस हो जाती, और अपनी नाक को लेकर सोचती — “काश ये थोड़ी पतली होती…”।
सोशल मीडिया ने और भी उलझा दिया था। इंस्टा पर जितनी लड़कियाँ थीं, सब एक से — गोरी, पतली, बिल्कुल परियों जैसी। और मीरा? उसे लगता था वो कहीं भी फिट नहीं हो रही।
फिर एक दिन स्कूल की Annual Day की प्रैक्टिस में, टीचर ने कहा —
“इस बार नाटक कुछ अलग होगा। हम असली हीरो पर प्ले करेंगे। और मीरा, तुम ‘किरण बेदी’ का रोल करोगी।”
पूरी क्लास चौंक गई।
मीरा? वो शांत लड़की जिसके हाथ हमेशा पेंट से रंगे रहते हैं? घुंघराले बाल और गहरी स्किन वाली?
मीरा धीरे से बोली —
“पर मैम, मैं दिखती भी नहीं हूं उनके जैसी…”
टीचर मुस्कुराईं और बोलीं —
“किसी की तरह दिखना ज़रूरी नहीं है मीरा। फील करना ज़रूरी है। किरदार को महसूस करना। बस वही काफी है।”
मीरा ने हिचकते हुए हाँ कर दी।
फिर शुरू हुई प्रैक्टिस। धीरे-धीरे किरन बेदी का रोल उसमें उतरने लगा। मीरा ने उनके इंटरव्यू देखे, किताब पढ़ी। उसने देखा कि कैसे वो लोगों की सोच से बड़ी बनीं, कैसे उन्होंने कभी अपने बाल, अपने रंग, अपने रूप के लिए शर्म नहीं की।
एक शाम, मीरा ने अपनी डायलॉग प्रैक्टिस करते हुए आईने में देखा — वही चेहरा, वही बाल, वही नाक — लेकिन इस बार उसने खुद को देखकर मुस्कुराया।
उस रात मीरा ने एक स्केच बनाया — एक लड़की शीशे के सामने खड़ी है और अपनी ही परछाई को देखकर मुस्कुरा रही है। उसने टाइटल दिया: “शीशे में एक योद्धा”
Annual Day के दिन, जब मीरा स्टेज पर खाकी वर्दी में खड़ी हुई, तो उसके डायलॉग्स में आवाज़ से ज्यादा आत्मविश्वास गूंज रहा था। तालियाँ सिर्फ परफॉर्मेंस के लिए नहीं थीं, वो उसके बदलाव के लिए थीं।
बैकस्टेज में उसकी दोस्त अंजलि बोली —
“यार मीरा, काश मेरी भी तेरे जैसी कॉन्फिडेंस होती… मैं तो हमेशा सोचती हूं कि काश मैं थोड़ी लंबी होती, थोड़ी पतली… इंस्टा वाली लड़कियों जैसी।”
मीरा मुस्कुराई और बोली —
“मैं भी पहले ऐसा ही सोचती थी। लेकिन अब समझ में आया — शीशा सिर्फ चेहरा दिखाता है, ताकत नहीं।”
“ये कहानी टेक्नोलॉजी की मदद से ज़रूर लिखी गई है, लेकिन हर लफ्ज़ में इंसानी जज़्बात बसते हैं — ताकि हर दिल को ये एहसास हो सके कि वो जैसा है, वैसा ही अनमोल है।”
Moral of the story is :-I mean that every person has strengths, they just need to be recognized, if a person is determined then he can do anything.