वियना का वो अस्पताल: जहाँ उम्मीदें दम तोड़ देती थीं

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यह 1847 की बात है। वियना के एक बड़े अस्पताल में डर का साया था।

हर कोने में उदासी और मातम पसरा हुआ था। प्रसव के लिए आने वाली माएँ, जो अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी का इंतजार कर रही थीं, उन्हें अक्सर पता नहीं होता था कि वे वापस घर जा पाएँगी या नहीं।

एक अजीब और रहस्यमयी बुखार, जिसे ‘चाइल्डबेड फीवर’ कहते थे, सैकड़ों माताओं की जान ले रहा था। डॉक्टरों के पास कोई जवाब नहीं था। वे हाथ पर हाथ धरे बैठे थे और माएँ एक-एक कर मौत के मुँह में समा रही थीं।

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एक युवा डॉक्टर की अनसुनी पुकार

इसी माहौल में एक युवा और जुनूनी डॉक्टर, इग्नाज़ सेमेल्विस (Ignaz Semmelweis), ने कदम रखा।

वह इस त्रासदी को देखकर बेचैन था। उसकी आत्मा को सुकून नहीं था।

उसने ध्यान दिया कि अस्पताल के दो अलग-अलग प्रसूति वार्ड थे।

एक में डॉक्टर और मेडिकल छात्र काम करते थे, जहाँ मौतें बेतहाशा हो रही थीं। दूसरे वार्ड में सिर्फ दाइयाँ काम करती थीं, और वहाँ मौतें बहुत कम होती थीं।

Semmelweis के लिए यह एक पहेली थी।

वह हर छोटे-बड़े पहलू का निरीक्षण करने लगा।

उसने पाया कि डॉक्टर और छात्र अक्सर शवों का पोस्टमार्टम करने के बाद सीधे प्रसूति वार्ड में चले आते थे।

उनके हाथों पर उस अनदेखे खतरे की परत जमी होती थी, जिसे वह उस समय ‘Cadaverous Particles’ (शव के कण) कहता था।

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एक दिन, उसके एक दोस्त की मौत हो गई।

पोस्टमार्टम के दौरान उसके हाथ में एक छोटा सा कट लग गया था।

Semmelweis ने देखा कि उसके दोस्त की मौत के लक्षण, उन माताओं के लक्षणों से बिल्कुल मिलते-जुलते थे।

बस यही वो पल था जब उसके दिमाग की बत्ती जल उठी! उसे अपने सवालों का जवाब मिल गया था।

जब सच कड़वा लगने लगा

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Semmelweis ने बिना देर किए एक नया नियम लागू किया: सभी डॉक्टरों और छात्रों को प्रसूति वार्ड में जाने से पहले अपने हाथों को क्लोरीन युक्त पानी से धोना होगा।

शुरुआत में लोग हँसे। हाथ धोने से क्या होगा? यह तो औरतों को और परेशान करेगा। लेकिन Semmelweis अपनी बात पर अडिग रहा।

और फिर, चमत्कार हुआ। जैसे-जैसे डॉक्टरों ने उसके नियम का पालन किया, मौत का सिलसिला कम होने लगा।

 

जिस वार्ड में मृत्यु दर 18% थी, वह घटकर 1% से भी कम हो गई। यह साफ सबूत था कि Semmelweis सही था।

लेकिन, उसकी जीत को किसी ने स्वीकार नहीं किया।

उस समय के प्रतिष्ठित डॉक्टरों को यह बात रास नहीं आई। उन्हें लगा कि एक युवा डॉक्टर उन्हें गलत साबित कर रहा है।

‘डॉक्टरों के हाथ गंदे होते हैं,’ यह बात उन्हें अपमानजनक लगी।

उन्होंने Semmelweis के खिलाफ षड्यंत्र रचा। उसे नौकरी से निकाल दिया गया और वियना से दूर भेज दिया गया।

एक गुमनाम नायक की अमर विरासत

Semmelweis अपनी बात को साबित करने के लिए संघर्ष करता रहा, लेकिन कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था।

वह मानसिक रूप से बीमार हो गया और आखिर में एक पागलखाने में ही उसकी मौत हो गई। Irony यह है कि उसकी मौत भी उसी संक्रमण से हुई, जिसके खिलाफ वह लड़ रहा था।

 

लेकिन कहानी यहाँ खत्म नहीं होती।

सालों बाद, जब लुई पाश्चर ने ‘जर्म थ्योरी’ (Germ Theory) की खोज की, तब जाकर दुनिया को Semmelweis के काम का असली महत्व समझ आया।

आज उसे ‘father ऑफ इंफेक्शन कंट्रोल’ कहा जाता है। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी सबसे साधारण और आसान उपाय ही सबसे बड़े संकट का समाधान होते हैं, और सच हमेशा जीतता है, भले ही उसमें समय लगे।

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