बात है 1976 की, फिलाडेल्फिया की। पूरे शहर में देश की आज़ादी की 200वीं सालगिरह का जश्न था।
शहर के बीचों-बीच, शानदार बेलव्यू-स्ट्रैटफ़ोर्ड होटल में, जो पुरानी शान-ओ-शौकत का नमूना था, हज़ारों भूतपूर्व सैनिक (veterans) जमा हुए थे।
ये लोग अमेरिकन लीजन (American Legion) नाम के एक संगठन के सालाना जलसे के लिए आए थे।
होटल का संगमरमर और पीतल सब चमक रहा था, और बाहर की झुलसा देने वाली गर्मी से बचने के लिए,
वहां का बड़ा-सा एयर कंडीशनिंग सिस्टम चल रहा था, जिसने सबको राहत दे रखी थी।
पर जैसे ही जलसा खत्म हुआ और भूतपूर्व सैनिक अपने-अपने घर लौटे, से ही मीटिंग खत्म हुई, एक दूसरी तरह का डरावना सिलसिला शुरू हो गया।
पेंसिल्वेनिया, न्यू जर्सी और आस-पास के इलाकों में, यह बीमारी फैलने लगी।
यह अचानक से आती थी, जिसमें बदन में तेज़ दर्द, तेज़ बुखार और लगातार खांसी होती थी।
जो मरीज़ पहले से ठीक-ठाक थे, उन्हें भी निमोनिया हो रहा था, और कोई भी आम एंटीबायोटिक इसपर काम नहीं कर रही थी।
चारों तरफ डर फैल गया। क्या यह कोई नया तरह का फ्लू था?
कोई आतंकवादी हमला? या कोई ज़हर?
मीडिया ने इस डराने वाले रहस्य को “फिलाडेल्फिया किलर” का नाम दे दिया।
सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल (CDC) में, वैज्ञानिकों की एक टीम हर छोटी-बड़ी बात की जांच में लग गई।
उन्होंने सिर्फ बीमार हुए सैनिकों से ही नहीं, बल्कि होटल के स्टाफ, वहां से गुज़रने वाले लोगों और हर उस शख्स से बात की जो बेलव्यू-स्ट्रैटफ़ोर्ड के आस-पास था।
उन्होंने हर चीज़ की जांच की, आइस मशीन से लेकर बर्तनों तक, ताकि कोई सुराग मिल सके।
सबूत मिल तो रहे थे, पर वे साफ़ नहीं थे: सभी मरीज़ों का होटल से कोई न कोई रिश्ता था, पर बीमारी एक-दूसरे से नहीं फैल रही थी।
ऐसा लग रहा था, मानो कोई अदृश्य चीज़ सिर्फ़ उन्हीं लोगों को शिकार बना रही थी जो होटल के पास थे।
छह महीने बाद, हज़ारों घंटों की मेहनत के बाद, आख़िरकार वो कामयाबी मिली।
CDC में काम करने वाले एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट, डॉ. जोसेफ मैकडैड ने ठंडी लैब में काम करते हुए एक नया,
पहले कभी न देखा गया बैक्टीरिया ढूंढ निकाला। वह सबकी नज़रों के सामने छिपा हुआ था।
यह एक ऐसा बैक्टीरिया था जो पानी में पनपता था और हवा में बारीक बूंदों के साथ फैल जाता था।
जांच में पता चला कि कसूरवार बेलव्यू-स्ट्रैटफ़ोर्ड का एयर कंडीशनिंग सिस्टम था,
जो इस खतरनाक बैक्टीरिया को हवा में फैलाने का एक बहुत अच्छा ज़रिया बन गया था।
इस बीमारी को एक नया नाम दिया गया, उस ग्रुप के सम्मान में, जो इसका सबसे पहला शिकार हुआ था: लीजननेयर्स डिजीज (Legionnaires’ disease)।
इस नए बैक्टीरिया, जिसका नाम बाद में Legionella pneumophila रखा गया, की खोज ने पूरी मेडिकल दुनिया को चौंका दिया।
इसने हमें सिखाया कि हमारे आधुनिक इमारतों में भी खतरा छिपा हो सकता है, चाहे वो कूलिंग टावर हों या गर्म पानी के टब।
इससे यह भी पता चला कि 20वीं सदी की तरक्की के बाद भी, नए खतरे कहीं से भी आ सकते हैं।
इस घटना ने न सिर्फ़ निमोनिया के इलाज का तरीका बदला,
बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर किया कि हम सार्वजनिक स्वास्थ्य (public health) और उस हवा के बारे में कैसे सोचते हैं
जो हम अपने घरों और दफ्तरों में लेते हैं। बेलव्यू-स्ट्रैटफ़ोर्ड के उस भूत को आख़िरकार पहचान मिल गई थी।
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