ज़रा सोचिए, अगर आप डॉक्टर के पास जाएँ और वो आपकी बीमारी का इलाज करने के लिए आपके शरीर से खून निकालने लगे तो?

आज ये सोचकर ही डर लगता है, पर हज़ारों सालों तक यही मेडिकल साइंस का सबसे कारगर और सबसे मशहूर तरीका था।

इस तरीक़े को कहते थे, ‘ब्लड लेटिंग’

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यह सब शुरू हुआ बहुत-बहुत पहले!

ब्लड लेटिंग का पहला सबूत हमें प्राचीन मिस्र (Ancient Egypt) में मिलता है,

करीब 3000 साल पहले। वहाँ के लोग सोचते थे कि यह तरीक़ा हिप्पो (hippopotamus) से सीखा गया है, , जो खुद को नुकीली चीज़ों से घायल करके खून निकालता था।

BLOOD LETTING

वहाँ से यह तरीक़ा प्राचीन यूनान (Ancient Greece) में फैला, जहाँ महान दार्शनिक हिप्पोक्रेट्स ने ‘4 रसों’ का सिद्धांत दिया।

इस सिद्धांत ने इसे एक वैज्ञानिक आधार दे दिया और यहीं से इसने दुनिया भर में अपनी पकड़ बना ली।

यह माना जाता था कि इंसान के शरीर में ख़ून, बलगम, पीला पित्त और काला पित्त का संतुलन बिगड़ने से ही बीमारियाँ होती हैं।

 

जगहें, लोग और तरीक़े

यह सिर्फ एक इलाक़े तक सीमित नहीं था।

मध्यकालीन यूरोप (Medieval Europe) में, यह इतना आम था कि डॉक्टर के अलावा, नाई भी सर्जन का काम करते थे।

नाई की दुकान के बाहर जो लाल और सफेद खंभा होता है, वो उसी ब्लड लेटिंग की निशानी है!

इसकी एक और अजीब मिसाल अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन के साथ हुई।

GEORGE WASHINTON

1799 में उन्हें गले में इन्फेक्शन हुआ, तो उनके डॉक्टरों ने उसी पुराने तरीक़े पर भरोसा किया।

सिर्फ़ दो दिनों में, उनके शरीर से करीब 2.5 लीटर खून निकाल लिया गया,

जो उनके कुल खून का लगभग 40% था। उनके शरीर में इतना कम खून बचा कि उनका दिल कमज़ोर हो गया

और आख़िरकार उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने बाद में मेडिकल समुदाय में काफ़ी हलचल मचाई।

 

कैसे निकालते थे खून?

ख़ून निकालने के तीन मुख्य तरीक़े थे:

वेंस में कट (Phlebotomy): यह सबसे आम तरीक़ा था। डॉक्टर एक छोटे से औज़ार, जिसे लैंसेट कहते थे, से नस पर कट लगाकर ख़ून निकालते थे।

BLOOD LETTING

क्यूपिंग (Cupping): इसमें गरम किए हुए शीशे के कप को त्वचा पर रखा जाता था। अंदर एक वैक्यूम बनता था, जो उस हिस्से में ख़ून खींच लेता था।

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जलाने वाली जोंक (Leeches): कहानी में एक और अजीब किरदार आता है: जोंक। ये ख़ून चूसने वाले कीड़े होते हैं, जिन्हें मरीज़ की त्वचा पर छोड़ दिया जाता था।

BLOOD LETTING

 

लुई पाश्चर ने कैसे बदल दी पूरी दुनिया?

ब्लड लेटिंग की यह प्रथा हज़ारों सालों तक इसलिए चलती रही क्योंकि किसी को पता ही नहीं था कि बीमारियाँ क्यों होती हैं।

पर फिर एंट्री होती है फ़्रांस के एक महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर की।

पाश्चर ने कई प्रयोग करके यह साबित कर दिया कि बीमारियाँ शरीर के अंदर की ख़राबी से नहीं, बल्कि बाहर से आने वाले अदृश्य कीटाणुओं (germs) से होती हैं।

इस खोज को ‘जर्म थ्योरी’ कहा गया।

 

इस सिद्धांत ने डॉक्टरों को बताया कि बीमारी को ठीक करने के लिए ख़ून निकालने की नहीं,

बल्कि सफ़ाई (hygiene) का ध्यान रखने और इन कीटाणुओं को ख़त्म करने की ज़रूरत है।

इस एक खोज ने ब्लड लेटिंग जैसी खतरनाक और बेकार प्रथा का हमेशा के लिए अंत कर दिया, और आधुनिक चिकित्सा की एक नई शुरुआत की।

यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे विज्ञान ने सिर्फ़ बीमारियों का इलाज नहीं बदला, बल्कि हमारी सोच का भी तरीका बदल दिया।

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