यह कहानी 2011 की है, जब निकोलस हेलम की ज़िंदगी एक आम अमेरिकी की तरह चल रही थी।
लेकिन अचानक, उनकी ज़िंदगी में एक अनजाना अंधेरा छाने लगा। उन्हें बेवजह थकान महसूस होने लगी, बिना किसी कारण के चक्कर आते और शरीर पर काबू नहीं रहता था।
घरवाले परेशान थे। “क्या तुमने पी रखी है?” उनकी पत्नी बार-बार पूछती, क्योंकि निकोलस के मुँह से हमेशा शराब की अजीब सी गंध आती थी।
निकोलस कसम खाकर कहते कि उन्होंने तो छुआ तक नहीं।
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पुलिस की गिरफ्त में
एक दिन निकोलस गाड़ी चला रहे थे। अचानक उन्हें चक्कर आया और गाड़ी लड़खड़ाने लगी। पुलिस ने उन्हें रोका और ब्रेथलाइजर टेस्ट करवाया।
पुलिस और निकोलस, दोनों चौंक गए। निकोलस के खून में अल्कोहल की मात्रा इतनी ज़्यादा थी कि वह कानूनी रूप से नशे में माने गए।
“मैं नशे में नहीं हूँ!” निकोलस चिल्लाते रहे, लेकिन उनकी बात कोई मानने को तैयार नहीं था।
उन पर शराब पीकर गाड़ी चलाने का इल्जाम लगा और उनकी ज़िंदगी में मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया।
उन्हें अपने ही शरीर पर शक होने लगा। क्या वह सच में झूठ बोल रहे थे?
डॉक्टरों का इनकार: एक दर्दनाक लड़ाई
निकोलस को लगा था कि सफेद कोट पहने ये लोग उसकी मदद करेंगे, पर उन्हें क्या पता था कि वह अपनी ही कहानी में सबसे बड़ा विलेन बन जाएगा।
जब भी वह किसी डॉक्टर के पास जाते, उन्हें अपनी कहानी सुनाते कि “मैं शराब नहीं पीता, लेकिन नशे में हो जाता हूँ,” तो डॉक्टर सिर्फ मुस्कुराते और कहते, “ये तो पुरानी बात हो गई।
आप कबूल कर लें, हम आपका इलाज करेंगे।”
कोई डॉक्टर उसकी आँखें देखकर कहता, “तुम्हारी आँखें झूठ नहीं बोलतीं, तुम नशे में हो।” कोई उसके मुँह से आती शराब की गंध पर ध्यान देता, “ये बदबू कहाँ से आ रही है?
तुम सच क्यों नहीं बोलते?” निकोलस के लिए यह हर बार एक नई यातना थी। उन्हें ऐसा महसूस होता था जैसे वह किसी ऐसी जेल में बंद हैं जहाँ कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं।
हर बार जब निकोलस ब्रेड, पास्ता या चावल खाते, तो उनका शरीर धीरे-धीरे लड़खड़ाने लगता।
उनके अंदर की ये रहस्यमयी ताक़त उन्हें हर दिन कमजोर कर रही थी।
वह अपनी पत्नी और बच्चों को समझाते-समझाते थक गए थे कि वह जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं, लेकिन जब हर मेडिकल रिपोर्ट और हर डॉक्टर उन्हें झूठा साबित कर रहा था, तो कौन यकीन करता?
दो साल तक यह ख़ौफ़नाक सिलसिला चलता रहा।
इस दौरान निकोलस ने अपनी नौकरी खो दी, उनके दोस्त उनसे दूर हो गए और समाज ने उन्हें एक शराबी का ठप्पा लगा दिया।
वह पूरी तरह अकेले पड़ गए थे, सिवाय अपनी पत्नी के जो अब भी उनके साथ थी, भले ही उसके मन में भी शक की एक छोटी सी चिंगारी जल रही थी।
वे दोनों हार मान चुके थे। निकोलस को लगने लगा था कि वह शायद अपनी बाकी की ज़िंदगी इसी तरह नशे की हालत में गुजारेंगे, बिना एक बूंद शराब पिए।
लेकिन तब तक उन्हें उम्मीद की एक किरण नहीं मिली थी।
सच्चाई का खुलासा
आखिरकार, 2013 में ओहियो के एक डॉक्टर ने उनकी बात को गंभीरता से लिया।
उन्होंने निकोलस के मल और खून के सैंपल लिए और गहरी जाँच की। जब वह रिपोर्ट लेकर निकोलस के सामने आए, तो उन्होंने सीधे कहा,
“मिस्टर हेलम, आपको ‘ऑटो-ब्रूअरी सिंड्रोम’ है।”
यह नाम सुनकर निकोलस पूरी तरह से अवाक रह गए।
ये कैसी बीमारी थी जिसका नाम उन्होंने पहले कभी नहीं सुना था?
डॉक्टर ने उनकी बेचैनी को भाँप लिया और समझाया कि उनके पेट में कुछ ख़ास तरह के फंगस (fungus) और यीस्ट (yeast) बहुत ज़्यादा मात्रा में जमा हो गए थे।
ये वही यीस्ट थे जिनका इस्तेमाल शराब बनाने के लिए किया जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम Saccharomyces cerevisiae है।
डॉक्टर ने खुलासा किया कि जब भी निकोलस कोई कार्बोहाइड्रेट वाली चीज़ खाते थे,
तो ये फंगस उसे पचाने की बजाय सीधे अल्कोहल में बदल देते थे।
निकोलस के पेट के अंदर ही एक छोटा सा शराब बनाने वाला “कारखाना” चल रहा था।
आराम और नई ज़िंदगी
डॉक्टरों ने उन्हें एंटी-फंगल दवाई दी और उनकी डाइट से कार्बोहाइड्रेट्स लगभग पूरी तरह से हटा दिए गए।
धीरे-धीरे निकोलस की हालत सुधरने लगी। कई साल की मुश्किलों के बाद, वह आखिरकार उस खौफनाक सिंड्रोम से बाहर निकल पाए।
यह कहानी दिखाती है कि हमारा शरीर कितना जटिल और रहस्यमयी है।
कभी-कभी हमें ऐसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है जिन पर यकीन करना मुश्किल होता है।
ऑटो-ब्रूअरी सिंड्रोम क्या है?
ऑटो-ब्रूअरी सिंड्रोम (Auto-brewery Syndrome) एक बहुत ही दुर्लभ मेडिकल कंडीशन है, जिसे गट फर्मेंटेशन सिंड्रोम (Gut Fermentation Syndrome) भी कहते हैं।
इस बीमारी में, पेट और आँतों में मौजूद यीस्ट (फंगस) और बैक्टीरिया कार्बोहाइड्रेट्स (जैसे चीनी और स्टार्च) को इथेनॉल (ethanol) में बदल देते हैं।
आम तौर पर हमारे पेट में ये यीस्ट कम मात्रा में होते हैं, लेकिन जब उनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है, तो वे खाना पचाने के बजाय किण्वन (fermentation) की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।
इसका नतीजा यह होता है कि शरीर में अल्कोहल बनता है और व्यक्ति बिना कुछ पिए ही नशे में आ जाता है। इस बीमारी के मुख्य लक्षण होते हैं:
चक्कर आना
थकान
धुंधला दिखाई देना
दिमाग का ठीक से काम न करना
इस बीमारी का इलाज एंटी-फंगल दवाइयों और कम कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट से किया जाता है।
क्या ऐसी कहानी भारत में भी है?
जिस तरह निकोलस हेलम के साथ हुआ, क्या आप जानते हैं कि ऐसे ही अजीबोगरीब हादसे हमारे देश के केरल में बस ड्राइवर्स के साथ हुए थे?
जब उन्हें बिना पिए नशे में होने के आरोप में पकड़ा, तो क्या हुआ?
यह घटना बिल्कुल चौंकाने वाली थी और इसने मेडिकल साइंस को भी हैरान कर दिया।
इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें: शरारती कटहल (Jackfruit)और शराब का टेस्ट: केरल के 3 बस चालक फँसे!
अस्वीकरण (Disclaimer)
ध्यान दें: यह कहानी एक वास्तविक और दुर्लभ मेडिकल कंडीशन पर आधारित है।
यहाँ दी गई जानकारी सिर्फ सामान्य ज्ञान के लिए है और इसे किसी भी तरह से डॉक्टरी सलाह नहीं माना जाना चाहिए।
अगर आपको या आपके किसी परिचित को ऐसी कोई स्वास्थ्य समस्या महसूस होती है, तो तुरंत किसी योग्य डॉक्टर से संपर्क करें।
किसी भी बीमारी का पता लगाने या इलाज के लिए स्व-उपचार (self-treatment) न करें।
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