आज आप किसी को खून देते हैं या लेते हैं, तो सबसे पहले क्या होता है?
डॉक्टर आपका ब्लड ग्रुप चेक करते हैं – A+, O-, B- वगैरह। यह इतना ज़रूरी क्यों है?
क्योंकि अगर गलत ग्रुप का खून चढ़ा दिया जाए, तो जान जा सकती है। पर क्या आपको पता है, यह बात दुनिया को करीब 120 साल पहले ही पता चली थी?
हमारी पिछली कहानियों में हमने देखा कि कैसे डेनिस ने जानवरों का खून इंसान को चढ़ाया और फिर जेम्स ब्लंडेल ने इंसान का खून इंसान को दिया।
ब्लंडेल ने आधे मरीजों को तो बचा लिया, पर आधे को नहीं। यह रहस्य बना हुआ था कि ऐसा क्यों होता था।
डॉक्टर जब एक मरीज़ को खून चढ़ाते थे, तो यह एक जुए जैसा था – उन्हें नहीं पता था कि मरीज़ बचेगा या नहीं।
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समस्या और एक वैज्ञानिक की बेचैनी
20वीं सदी की शुरुआत तक, ब्लड ट्रांसफ्यूजन एक भयानक खेल था।
कोई नहीं जानता था कि वह सफल होगा या नहीं। यह सब देखकर एक ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर बहुत परेशान थे।
वियना यूनिवर्सिटी में वह एक पैथोलॉजिस्ट थे और उन्होंने अपनी आँखों से लोगों को गलत ट्रांसफ्यूजन के कारण मरते देखा था।
उनकी प्रयोगशाला में, वह यह पता लगाने के लिए बेचैन थे कि आखिर ऐसा क्यों होता है।
वह जानते थे कि कुछ तो है जो खून को आपस में मिलाने पर गड़बड़ कर देता है।
पर क्या? और क्यों?
एक सरल प्रयोग, जिसने इतिहास रच दिया
लैंडस्टीनर के पास कोई बड़ी मशीनें नहीं थीं। उन्होंने एक बहुत ही सीधा-साधा तरीका अपनाया।
उन्होंने अपने कुछ साथियों को मनाया, और खुद का भी खून लिया।
उन्होंने कुल मिलाकर 22 लोगों के खून के नमूने लिए, जिसमें उनके लैब असिस्टेंट और वह खुद शामिल थे।
उन्होंने एक-एक करके खून के नमूनों को आपस में मिलाया। वह एक ग्लास स्लाइड पर खून की एक बूँद लेते और दूसरी बूँद मिलाकर उसे माइक्रोस्कोप के नीचे देखते।
और उन्हें वह जवाब मिल गया जो सदियों से खोजा जा रहा था।
उन्होंने देखा कि कुछ खून के नमूनों को मिलाने पर लाल रक्त कोशिकाएं आपस में चिपककर गुच्छे (clumps) बना लेती थीं।
पर कुछ नमूनों को मिलाने पर ऐसा कुछ नहीं होता था।
सच्चाई का खुलासा और मौत की असली वजह
लैंडस्टीनर समझ गए कि खून एक जैसा नहीं होता।
उन्होंने यह भी साबित किया कि जो गुच्छे उनकी स्लाइड पर बन रहे थे, वही प्रक्रिया उन मरीजों की नसों में हो रही थी जिन्हें गलत ग्रुप का खून चढ़ाया गया था।
खून के गुच्छे नसों को ब्लॉक कर देते थे, जिससे शरीर में खून का संचार रुक जाता था और मरीज की मौत हो जाती थी।
लैंडस्टीनर ने सिर्फ एक थ्योरी नहीं दी, बल्कि अपनी आँखों से यह साबित कर दिया कि यही मौत की असली वजह है।
यह उस समय की सबसे बड़ी खोजों में से एक थी।
उनकी इस खोज ने लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जानें बचाई हैं और आज भी बचा रही है।
चिकित्सा की दिशा बदल गई
लैंडस्टीनर की इस महान खोज के लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला और उन्हें “ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन का जनक” कहा जाता है।
उनकी खोज के बाद, डॉक्टरों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन से पहले ब्लड ग्रुप की जांच करना शुरू किया और यह प्रक्रिया एकदम सुरक्षित हो गई।
आज हम जो सुरक्षित ब्लड डोनेशन और ट्रांसफ्यूजन देखते हैं, उसकी नींव उसी सरल प्रयोग पर रखी गई थी।
एक वैज्ञानिक की जिज्ञासा और एक छोटी सी स्लाइड पर चिपके हुए खून के गुच्छे ने दुनिया की सबसे ज़रूरी और जीवनदायिनी चिकित्सा प्रक्रिया को हमेशा के लिए बदल दिया।
तो अगली बार जब आप अपना ब्लड ग्रुप देखें, तो याद करें उस वैज्ञानिक को जिसने अपनी साधारण सी खोज से दुनिया को एक नया जीवनदान दिया।
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