आज जब भी हमें कोई चोट लगती है, तो खून बहता है। हम जानते हैं कि यह खून हमारे दिल से आता है, पूरे शरीर में घूमता है, और फिर वापस दिल में चला जाता है।

यह बात हमें इतनी आम लगती है कि हम कभी सोचते ही नहीं कि इस सच्चाई को खोजने में सदियाँ लग गईं।

आज से करीब 400 साल पहले, चिकित्सा जगत में एक वैज्ञानिक थे जिनका नाम था विलियम हार्वे (1578-1657)।

ये वही इंसान हैं जिन्होंने खून के संचार (Blood Circulation) का रहस्य खोला और चिकित्सा विज्ञान की दिशा हमेशा के लिए बदल दी।

BLOOD HISTORY

एक पुरानी सोच और एक वैज्ञानिक का सवाल

विलियम हार्वे से पहले, दुनिया 1500 सालों से यूनानी चिकित्सक गेलन (Galen) की थ्योरी पर विश्वास करती थी।

गैलन का मानना था कि हमारा शरीर खाना खाकर लिवर में नया खून बनाता है।

यह खून नसों में बहता है और एक बार इस्तेमाल होने के बाद पूरी तरह से खत्म हो जाता है।

यानी, खून का कोई ‘सर्कुलेशन’ नहीं था।

यह एक ‘वन-वे’ सड़क की तरह था, जहाँ खून आगे तो जाता था, पर वापस नहीं आता था।

BLOOD

विलियम हार्वे को यह थ्योरी कभी समझ नहीं आई।

उन्हें सबसे बड़ी दिक्कत गणित के हिसाब से लगी। उन्होंने हिसाब लगाया कि एक इंसान का दिल एक मिनट में लगभग 70 मिलीलीटर खून पंप करता है।

अगर एक घंटे का हिसाब लगाएँ तो यह लगभग 4.2 लीटर होता है, और एक दिन में यह मात्रा 100 लीटर से भी ज़्यादा हो जाती है।

हार्वे ने सोचा कि अगर हर बार खून नया बनता है, तो शरीर को इतनी तेज़ी से खाना क्यों नहीं पचता?

एक इंसान का वज़न तो 60-70 किलो ही होता है, तो क्या हर दिन शरीर अपने वज़न से भी कई गुना ज़्यादा नया खून बनाता है?

यह बात साफ थी कि शरीर इतनी जल्दी खून बना नहीं सकता, बल्कि वह लगातार घूम रहा है।

यह उनका पहला सवाल था जिसने उन्हें 1500 साल पुरानी सोच पर सवाल उठाने के लिए मजबूर कर दिया।

चुनौतियों का सामना और एक अनोखा वैज्ञानिक तरीका

BLOOD GROUPS

उस ज़माने में किसी भी पुरानी धारणा को चुनौती देना धर्म और समाज के खिलाफ़ जाने जैसा था।

लेकिन हार्वे ने धार्मिक मान्यताओं या पुरानी किताबों पर भरोसा करने के बजाय, खुद प्रयोग करने का फैसला किया।

उन्होंने सिर्फ इंसानों पर ही नहीं, बल्कि कई जानवरों पर भी अध्ययन किया।

उन्होंने जानवरों के शरीर को खोलकर उनके दिल और नसों का बहुत ध्यान से अध्ययन किया।

उन्होंने धमनियों (Arteries) और नसों (Veins) को बारी-बारी से बाँधकर भी प्रयोग किए।

उन्होंने देखा कि जब वह किसी धमनी को दबाते हैं, तो उसके आगे का हिस्सा फूल जाता है, जिससे यह साबित होता है कि खून दिल से बाहर की ओर बहता है।

इसके उलट, जब वह नस को दबाते हैं, तो उसके पीछे का हिस्सा फूल जाता है, जिससे यह साबित होता है कि खून दिल की तरफ लौटता है।

उन्होंने नसों में मौजूद छोटे-छोटे वाल्वों (Valves) पर भी ध्यान दिया जो खून को सिर्फ़ दिल की तरफ जाने देते थे। ये वाल्व खून को वापस जाने से रोकते थे।

यह सब देखकर हार्वे को पूरा विश्वास हो गया कि खून एक बंद लूप (Closed Loop) में दिल से शुरू होकर पूरे शरीर में घूमता है और फिर वापस दिल में आ जाता है।

किताब, शुरुआती विरोध और “सर्कुलेटर” का ताना

विलियम हार्वे ने अपनी इस क्रांतिकारी खोज को 1628 में एक किताब में छापा, जिसका नाम था “De Motu Cordis” (दिल और खून की गति पर)।

इस किताब के छपने के बाद उन्हें बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

उनके समकालीन डॉक्टरों ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया और उनका मज़ाक उड़ाया।

बहुत से लोग उन्हें “सर्कुलेटर” (circulator) कहकर बुलाते थे, क्योंकि उन्होंने खून के संचार की बात की थी।

उनका यह मज़ाक था कि हार्वे ने खून को सर्कस दिखाने वाले की तरह बस घुमाना शुरू कर दिया है।

उनकी प्रैक्टिस भी प्रभावित हुई क्योंकि रोगी उनके पास इलाज कराने से डरने लगे।

लेकिन हार्वे अपनी बात पर डटे रहे। उन्होंने अपनी खोज को साबित करने के लिए लगातार प्रयोग किए और अपने तर्कों पर टिके रहे।

मान्यता और जीत का सफर

हार्वे को तुरंत पहचान नहीं मिली, लेकिन उनकी मेहनत और सबूतों ने धीरे-धीरे असर दिखाना शुरू किया।

उनकी खोज इतनी तार्किक और सबूतों पर आधारित थी कि एक समय के बाद उसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो गया।

उनके जीवन के आखिरी सालों में, 1640 और 1650 के दशक तक, उनकी खोज को पूरे यूरोप के वैज्ञानिक और मेडिकल समुदाय ने स्वीकार कर लिया।

उन्होंने अपनी खोज को साबित करने के लिए कई साल तक लगातार प्रयोग किए, और अंत में उनके तर्कों की जीत हुई।

उनकी खोज को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एक मील का पत्थर माना जाता है।

आधुनिक चिकित्सा का आधार

विलियम हार्वे की खोज ने ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन का रास्ता खोला।

गैलन की पुरानी थ्योरी के अनुसार, खून एक बार बनने के बाद “इस्तेमाल” हो जाता था।

ऐसे में किसी को खून देना या लेना संभव ही नहीं था।

 

लेकिन जब हार्वे ने यह साबित किया कि खून एक बंद लूप में लगातार घूमता है, तो वैज्ञानिकों ने सोचना शुरू किया कि इस लूप में बाहर से खून डाला भी जा सकता है।

उनकी खोज ने ही यह विचार दिया कि खून को शरीर से निकाला जा सकता है और फिर से डाला जा सकता है।

यह एक ऐसी सोच थी जिसने जीन-बाप्तिस्ट डेनिस और जेम्स ब्लंडेल जैसे डॉक्टरों को जानवरों और फिर इंसानों पर खून चढ़ाने के प्रयोग करने की प्रेरणा दी, भले ही उस समय ब्लड ग्रुप की जानकारी नहीं थी।

इस तरह, हार्वे ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की नींव रखी और यह समझाया कि शरीर का सबसे महत्वपूर्ण तरल पदार्थ कैसे काम करता है, जिसने बाद में ब्लड ट्रांसफ्यूजन जैसी जान बचाने वाली प्रक्रिया को संभव बनाया।

उनका काम हमें यह सिखाता है कि विज्ञान सिर्फ़ पुरानी बातों को मानना नहीं, बल्कि हर चीज़ पर सवाल उठाना और सबूतों के आधार पर ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना है।

खून का चौथा अध्याय: जब खून को बोतल में रखा गया – एक क्रांति की कहानी 

खून का चौथा अध्याय: जब खून को बोतल में रखा गया – एक क्रांति की कहानी 

अस्वीकरण (Disclaimer)

कृपया ध्यान दें: यह ब्लॉग पोस्ट केवल जानकारी और ऐतिहासिक उद्देश्यों के लिए है।

इसका उद्देश्य किसी भी तरह की चिकित्सा सलाह या इलाज देना नहीं है। स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए हमेशा योग्य डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लें।