आपने शायद बचपन में किसी बुजुर्ग को कहते सुना होगा, “उस बच्चे को काली खांसी हो गई है।”
यह एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनकर ही दिल सहम जाता है।
आज की दुनिया में, जहाँ बीमारियों का इलाज बहुत आसान हो गया है, वहाँ यह सोचना मुश्किल लगता है कि एक साधारण सी खांसी किसी की जान ले सकती है।
लेकिन, हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (UK) में हुई एक दुखद घटना ने इस बात को फिर से साबित कर दिया है कि Whooping Cough (काली खांसी) आज भी एक गंभीर खतरा है, खासकर छोटे बच्चों के लिए।
यूके में एक नवजात शिशु की मौत काली खांसी से हुई है, जिसकी माँ को गर्भावस्था के दौरान यह वैक्सीन नहीं लगी थी।
यह खबर न सिर्फ़ डराती है, बल्कि हमें यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि क्या हम अपने बच्चों और अपने समुदाय को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए सब कुछ कर रहे हैं?
इस ब्लॉग में हम काली खांसी के बारे में सब कुछ जानेंगे – यह क्यों होती है, इसके लक्षण क्या हैं, यह बच्चों के लिए इतनी ख़तरनाक क्यों है,
और सबसे ज़रूरी, हम अपने आपको और अपने परिवार को इससे कैसे बचा सकते हैं।
हम भारतीय दिशानिर्देशों पर भी विस्तार से बात करेंगे ताकि आप पूरी तरह से जागरूक हो सकें।
Table of Contents
काली खांसी क्या है? (What is Whooping Cough?)
काली खांसी को चिकित्सकीय भाषा में पर्टुसिस (Pertussis) कहा जाता है।
यह एक बहुत ही संक्रामक (contagious) श्वसन रोग (respiratory disease) है जो बोर्डेटेला पर्टुसिस (Bordetella pertussis) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।
यह बैक्टीरिया हमारे गले और फेफड़ों में चिपक जाता है और ज़हरीले पदार्थ (toxins) पैदा करता है, जिससे हमारे वायुमार्ग (airways) में सूजन और जलन होती है।

काली खांसी फैलाने वाले बैक्टीरिया, बोर्डेटेला पर्टुसिस का एक वैज्ञानिक चित्रण।
यह बीमारी इतनी आसानी से फैलती है कि अगर कोई संक्रमित व्यक्ति खाँसे या छींके, तो उसके मुँह से निकली हुई छोटी-छोटी बूँदें (droplets) हवा में फैल जाती हैं।
अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति उन बूँदों को साँस के साथ अंदर ले लेता है, तो वह भी संक्रमित हो सकता है।
काली खांसी किसी को भी हो सकती है, लेकिन यह शिशुओं और बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
इस बीमारी को तीन अलग-अलग चरणों में बाँटा जाता है, और हर चरण में इसके लक्षण बदलते रहते हैं।
पहला चरण (शुरुआती) – कैटरल स्टेज (Catarrhal Stage)
यह चरण 1 से 2 हफ्ते तक चलता है। इस समय लक्षण बिल्कुल सामान्य सर्दी-जुकाम जैसे होते हैं, जैसे:
हल्की खांसी
बहती नाक
कम बुखार
आँखों से पानी आना इस चरण में, बीमारी को पहचानना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि यह सामान्य सर्दी-जुकाम जैसी लगती है।
लेकिन, यही वह समय होता है जब यह सबसे ज़्यादा संक्रामक होती है।
दूसरा चरण – परॉक्सीज़मल स्टेज (Paroxysmal Stage)
यह चरण 1 से 6 हफ्तों तक चल सकता है और यही वह समय है जब बीमारी का असली रूप दिखता है।
जानलेवा खांसी के दौरे (Violent Coughing Fits)
खांसी इतनी तेज होती है कि साँस लेना मुश्किल हो जाता है। एक के बाद एक कई खांसियाँ आती हैं, जिससे व्यक्ति को लगता है कि उसकी साँस रुक जाएगी।
“हूप” की आवाज़ (The “Whoop” Sound): जब खांसने के दौरे के बाद साँस अंदर ली जाती है, तो एक तेज़, खींचने वाली आवाज़ आती है, जिसे “हूप” कहा जाता है।
इसी से इस बीमारी का नाम “काली खांसी” पड़ा है।
उल्टी और थकान: खांसी इतनी ज़ोरदार होती है कि व्यक्ति को उल्टी हो जाती है।
लगातार खांसी के कारण शरीर में बहुत ज़्यादा थकान होती है।
तीसरा चरण – स्वास्थ्य लाभ का चरण (Convalescent Stage)
यह चरण धीरे-धीरे ठीक होने का होता है, और इसमें कई हफ्ते या महीने भी लग सकते हैं।
खांसी के दौरे धीरे-धीरे कम होने लगते हैं।
लेकिन, यह खांसी कई हफ्तों तक रह सकती है, खासकर जब व्यक्ति खाए, सोए या शारीरिक गतिविधि करे।
इस चरण में व्यक्ति अब उतना संक्रामक नहीं होता, लेकिन पूरी तरह ठीक होने में समय लगता है।
बच्चों के लिए यह इतनी ख़तरनाक क्यों है? (Why Is It So Dangerous for Children?)
वयस्कों में काली खांसी सिर्फ़ एक लंबी और थका देने वाली बीमारी हो सकती है, लेकिन शिशुओं के लिए यह जानलेवा साबित हो सकती है।
6 महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए यह सबसे बड़ा खतरा है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि:
कमज़ोर इम्यून सिस्टम (Weak Immune System): छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) अभी पूरी तरह से विकसित नहीं होती।
उनका शरीर संक्रमण से लड़ने में उतना सक्षम नहीं होता।
दौरों में “हूप” का न होना: नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में “हूप” की आवाज़ अक्सर नहीं आती।
इसके बजाय, उन्हें साँस लेने में बहुत ज़्यादा परेशानी होती है।
वे खांसने की बजाय साँस लेना ही बंद कर सकते हैं, जिसे एप्निया (Apnea) कहते हैं।
गंभीर जटिलताएँ (Serious Complications)
शिशुओं में काली खांसी से कई गंभीर समस्याएँ हो सकती हैं, जैसे:
निमोनिया (Pneumonia): फेफड़ों का संक्रमण।
दौरे (Seizures): तेज़ खांसी के कारण दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
नीला पड़ना (Cyanosis): शरीर में ऑक्सीजन की कमी के कारण होंठ और त्वचा नीले पड़ सकते हैं।
ब्रेन डैमेज: लगातार ऑक्सीजन की कमी से दिमाग को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है।
अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत: काली खांसी वाले आधे से ज़्यादा बच्चे जिन्हें निमोनिया, एप्निया या अन्य गंभीर जटिलताएँ होती हैं, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है।
यहाँ एक माँ अपने शिशु को लेकर बहुत चिंतित है, जो काली खांसी से जूझ रहा है:
हाल की यूके की खबरें और घटती वैक्सीनेशन दरें (Recent UK News and Falling Vaccination Rates)
हाल ही में यूके में एक दुखद खबर आई जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।
एक नवजात शिशु की मौत काली खांसी से हो गई। खबर में बताया गया कि शिशु की माँ को गर्भावस्था के दौरान यह वैक्सीन नहीं लगी थी।
यह घटना एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाती है: वैक्सीनेशन (Vaccination)।
बीबीसी न्यूज़, द गार्जियन (The Guardian), और स्काई न्यूज़ (Sky News) जैसी बड़ी समाचार एजेंसियों ने
इस घटना पर रिपोर्ट करते हुए बताया कि यूके में बच्चों के लिए काली खांसी के टीकाकरण की दरें गिर रही हैं।
टीका न लगने के कारण, बच्चों में इस बीमारी के मामले अचानक बढ़ गए हैं।

टीकाकरण से मिली सुरक्षा का एहसास।
गर्भावस्था में टीकाकरण (Vaccination During Pregnancy)
जब एक गर्भवती महिला को काली खांसी का टीका लगता है, तो उसका शरीर एंटीबॉडी (antibodies) बनाता है।
ये एंटीबॉडी गर्भनाल (placenta) के ज़रिए शिशु तक पहुँचती हैं।
जन्म के बाद, ये एंटीबॉडी शिशु को पहले कुछ महीनों तक सुरक्षा देती हैं, जब तक कि उसे खुद का टीका न लग जाए।
इसे ही मातृ सुरक्षा (Maternal Immunity) कहते हैं।
कोकूनिंग रणनीति (Cocooning Strategy)
यह रणनीति नवजात शिशु को काली खांसी से बचाने के लिए अपनाई जाती है।
इसमें माता-पिता, भाई-बहन और घर के अन्य सदस्यों को भी टीका लगाया जाता है, ताकि वे शिशु के आसपास एक सुरक्षा कवच बना सकें।
इन खबरों से साफ़ है कि घटते टीकाकरण की दरें एक गंभीर समस्या हैं।
अगर लोग अपने बच्चों को टीका नहीं लगवाते हैं, तो इसका असर पूरे समुदाय पर पड़ता है।
जिन बच्चों को किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण टीका नहीं लग सकता, वे और भी ज़्यादा जोखिम में आ जाते हैं।
Whooping Cough (काली खांसी): भारतीय दिशानिर्देश (Whooping Cough: Indian Guidelines)
भारत सरकार भी काली खांसी के खतरे को लेकर बहुत गंभीर है।
यहाँ राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम (National Immunization Programme) के तहत बच्चों को काली खांसी का टीका मुफ्त में दिया जाता है।
यह टीका डीपीटी (DPT) के नाम से जाना जाता है, जिसमें तीन बीमारियों के टीके शामिल हैं: डिप्थीरिया (Diphtheria), पर्टुसिस (Pertussis) और टिटनेस (Tetanus)।
भारत में बच्चों को यह टीका एक तय समय-सारणी के अनुसार दिया जाता है:
पहला टीका (Primary Doses)
पहला शॉट: बच्चे के 6 हफ्ते की उम्र में।
दूसरा शॉट: बच्चे के 10 हफ्ते की उम्र में।
तीसरा शॉट: बच्चे के 14 हफ्ते की उम्र में।
बूस्टर शॉट (Booster Doses)
पहला बूस्टर: 16 से 24 महीने की उम्र में।
दूसरा बूस्टर: 5 से 6 साल की उम्र में।
भारत सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार, यह टीकाकरण शेड्यूल बहुत ज़रूरी है और इसे पूरी तरह से फॉलो करना चाहिए।
अगर कोई बच्चा किसी कारणवश एक भी टीका चूक जाता है, तो उसे तुरंत अगले उपलब्ध मौके पर लगवाना चाहिए।
गर्भवती महिलाओं के लिए टीकाकरण (Vaccination for Pregnant Women)
भारत में अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर गर्भवती महिलाओं के लिए काली खांसी का टीका अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन कई डॉक्टर इसकी सलाह देते हैं।
आईसीएमआर (ICMR) और अन्य स्वास्थ्य संगठन भी इस पर विचार कर रहे हैं।
गर्भवती महिला को टी-डैप (Tdap) का टीका लगाने से शिशु को जन्म से ही सुरक्षा मिल जाती है।
इलाज और बचाव (Treatment and Prevention)
काली खांसी का इलाज और बचाव दोनों ही बहुत ज़रूरी हैं।
इलाज (Treatment)
एंटीबायोटिक्स (Antibiotics)
अगर बीमारी का पता शुरुआती चरण में ही लग जाए, तो डॉक्टर एंटीबायोटिक्स देते हैं।
ये दवाएँ बैक्टीरिया को ख़त्म कर सकती हैं और बीमारी की गंभीरता को कम कर सकती हैं।
हालाँकि, दूसरे या तीसरे चरण में एंटीबायोटिक्स उतना असरदार नहीं होते।
सहायक देखभाल (Supportive Care)
गंभीर मामलों में, खासकर बच्चों में, सहायक देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। इसमें शामिल है:
अस्पताल में भर्ती (Hospitalization): अगर बच्चा साँस नहीं ले पा रहा है या उसे निमोनिया हो गया है।
ऑक्सीजन देना: साँस लेने में दिक्कत होने पर।
आराम और हाइड्रेशन: मरीज़ को पूरी तरह से आराम करना चाहिए और खूब पानी पीना चाहिए।
बचाव (Prevention)
टीकाकरण (Vaccination): यह काली खांसी से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है।
बच्चों को उनके निर्धारित समय पर टीका लगवाना बहुत ज़रूरी है।
स्वच्छता (Hygiene): हाथ धोना, खाँसते या छींकते समय मुँह और नाक को ढकना, और बीमार लोगों से दूरी बनाए रखना भी ज़रूरी है।
अफ़वाहों से सावधान (Beware of Rumors)
टीकाकरण को लेकर कई तरह की अफ़वाहें फैलती हैं, जिन पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।
अफ़वाह #1: “टीकाकरण से ऑटिज़म (Autism) होता है।” यह बिल्कुल गलत है। वैज्ञानिक शोध ने बार-बार साबित किया है कि काली खांसी के टीके और ऑटिज़म के बीच कोई संबंध नहीं है।
अफ़वाह #2: “काली खांसी अब इतनी आम नहीं है, तो टीका लगवाने की क्या ज़रूरत?” यह गलत है। जैसा कि हमने यूके की खबरों में देखा, टीकाकरण दरें गिरने से बीमारी के मामले फिर से बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
काली खांसी एक गंभीर और जानलेवा बीमारी है, लेकिन इसे पूरी तरह से रोका जा सकता है।
एक माँ को टीका लगवाना, या बच्चे को समय पर टीका लगवाना, सिर्फ़ उस व्यक्ति की सुरक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे पूरे समुदाय के लिए एक सुरक्षा कवच है।
हमारा दिया गया एक टीका किसी बच्चे को जिंदगी भर की सुरक्षा दे सकता है।
इसलिए, समय पर अपने बच्चे का टीकाकरण करवाएं और अपने परिवार को इस बीमारी से सुरक्षित रखें।
प्रामाणिक स्रोत (Authentic Sources)
World Health Organization (WHO) Pertussis Fact Sheet: https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/pertussis
Centers for Disease Control and Prevention (CDC) – Pertussis (Whooping Cough): https://www.cdc.gov/pertussis/index.html
UK Health Security Agency (UKHSA) – Whooping Cough Guidance: https://www.gov.uk/government/collections/pertussis-guidance-data-and-analysis
BBC News article on whooping cough death: https://www.bbc.com/news/articles/cx2xe5l4mn5o
The Guardian article on falling vaccination rates: https://www.theguardian.com/society/2025/aug/31/british-baby-dies-from-whooping-cough-as-vaccination-rates-fall
Sky News article on baby’s death: https://news.sky.com/story/baby-whose-mother-was-unvaccinated-dies-of-whooping-cough-13422047
Ministry of Health and Family Welfare, Government of India – National Immunization Schedule (NIS): https://www.mohfw.gov.in/sites/default/files/245453521061489663873.pdf
सेलिब्रिटी शेफ गॉर्डन रामसे को हुआ त्वचा का कैंसर (Celebrity Chef Gordon Ramsay Gets Skin Cancer)
अस्वीकरण (Disclaimer)
यह ब्लॉग केवल जानकारी के लिए है और इसे किसी भी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।
किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए हमेशा एक योग्य डॉक्टर से संपर्क करें।
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