क्या आपने कभी किसी को सोते-सोते अचानक बोलते सुना है?
कोई बेमतलब की बातें, कभी हँसना, तो कभी डाँटना — और सुबह उन्हें खुद याद भी नहीं रहता।
इसे कहते हैं नींद में बातें करना या स्लीप टॉकिंग। आइए जानें यह क्यों होता है।
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🔬 असली वजह – नींद के अलग-अलग चरण
हमारी नींद कई चरणों (स्टेज़) में बँटी होती है।
हल्की नींद (लाइट स्लीप) में दिमाग़ आधा सक्रिय रहता है।
इस दौरान जब सपनों और असली दुनिया के बीच उलझन होती है, तो मुँह से अचानक शब्द या वाक्य निकल जाते हैं।
यही कहलाता है स्लीप टॉकिंग।
👨👩👧 किन लोगों में ज़्यादा होता है?
बच्चे और किशोरों में यह आम है।
तनाव, थकान या नींद की कमी से बड़ों में भी हो सकता है।
परिवार में अगर किसी को यह आदत है, तो आनुवंशिक रूप से दूसरों में भी आ सकती है।
😴 क्या कहा जाता है?
कभी बेमतलब की बड़बड़ाहट।
कभी सपनों की बात।
कभी-कभी साफ़ शब्द या वाक्य भी।
दिलचस्प बात यह है कि स्लीप टॉकिंग करने वाले को सुबह इसकी बिल्कुल याद नहीं रहती।
🚫 भ्रांति का सच
कई लोग सोचते हैं कि नींद में बातें करना मतलब कोई मानसिक बीमारी है। यह सच नहीं है। ज़्यादातर मामलों में यह हानिरहित और अस्थायी होता है।
✅ झटपट नतीजा
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नींद में बातें करना दिमाग़ के आधे सक्रिय रहने की वजह से होता है।
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यह बच्चों और तनावग्रस्त बड़ों में आम है।
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यह खतरनाक नहीं है और अधिकतर मामलों में इलाज की ज़रूरत नहीं।
🌀 तीन आसान चरणों में “नींद में बातें”
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हल्की नींद के दौरान दिमाग़ आधा जागा रहता है।
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सपनों और असलियत के बीच गड़बड़ी होती है।
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नतीजा → नींद में बातें।
नतीजा: यह सामान्य है, चिंता की ज़रूरत नहीं।
छोटी सलाह: अच्छी नींद की आदतें अपनाएँ – नियमित समय पर सोएँ, तनाव कम करें और सोने से पहले स्क्रीन से दूर रहें। इससे स्लीप टॉकिंग कम हो सकती है।