hungry before bedपूरे दिन नाश्ता, लंच, डिनर सब कर चुके हों…

फिर भी रात को सोने से ठीक पहले पेट से आवाज़ आती है और दिमाग़ कहता है – “कुछ खा लो यार!”

 आखिर ऐसा क्यों होता है?

 असली वजह – हॉर्मोन का खेल

हमारे शरीर में भूख का हॉर्मोन घ्रेलिन (Ghrelin) और पेट भरने का हॉर्मोन लेप्टिन (Leptin) काम करते हैं।

रात के समय घ्रेलिन कभी-कभी ज़्यादा एक्टिव हो जाता है।

इससे दिमाग़ को लगता है → “पेट खाली है, खाना चाहिए।”

नतीजा → नींद की जगह भूख लग जाती है।

 दिमाग़ का ट्रिक – “बोरियत वाली भूख”

रात को काम-धंधा ख़त्म, टीवी या मोबाइल पर स्क्रॉलिंग…

दिमाग़ बोर हो रहा होता है → तो तुरंत “चलो खा लें कुछ” का सिग्नल भेज देता है।

इसे कहते हैं क्रेविंग, असली भूख नहीं।

 फ़नी सिचुएशन

मम्मी कहें → “दिनभर खाते हो, अब सो जाओ।”

और आप चुपके से फ्रिज खोलकर बिस्किट या मैगी बना रहे हों। 🍪🍜

सुबह उठकर पछतावा → “काश रात को न खाता।” 😂

🚫 भ्रांति का सच

कई लोग सोचते हैं “रात को खाना = मोटापा पक्का।”

सच यह है कि मोटापा खाने की क्वांटिटी और कैलोरी पर निर्भर करता है, टाइम पर नहीं।

लेकिन हाँ, देर रात का स्नैक ज़्यादा हो तो मोटापा बढ़ सकता है।

 झटपट नतीजा

  1. रात में घ्रेलिन बढ़ा → भूख लगी।

  2. दिमाग़ बोर हुआ → क्रेविंग बढ़ी।

  3. पेट बोला → “कुछ खिला दो।”

 तीन आसान चरणों में “लेट नाइट हंगर”

  1. दिनभर खाया → फिर भी दिमाग़ एक्टिव।

  2. हॉर्मोन बोले → भूख लगी है।

  3. हाथ पहुँच गया फ्रिज तक।

नतीजा: रात की भूख असली भूख नहीं, अक्सर बोरियत + हॉर्मोन का खेल है। 😜

छोटी सलाह

सोने से 2–3 घंटे पहले हल्का डिनर करें।

अगर भूख लगे तो भारी स्नैक्स नहीं, फल या दूध लें।

और हाँ, “रात की मैगी” वाली आदत कभी-कभी ही चलेगी, डेली नहीं। 😉