जब भी हम बीमार होते हैं, हमारी बॉडी की सुरक्षा तैनात हो जाती है — यह सिस्टम दिन-रात काम करता है: वायरस, बैक्टीरिया, जितने भी छोटे-छोटे दुश्मन हैं, उन्हें पहचान कर भगाता है।

पर कल्पना कीजिए अगर यही सुरक्षा कभी-कभी अपनी ही इमारत पर हमला कर दे — यानी शरीर के अपने अंगों को।

यही है autoimmune diseases का मर्म — यानी जब रक्षक ही हमलावर बन जाएं।

Nobel Prize 2025

साल 2025 का नोबेल पुरस्कार (Physiology or Medicine) दी गई उन तीन वैज्ञानिकों को

Mary E. Brunkow, Fred Ramsdell और Shimon Sakaguchi

जिन्होंने यही समझाया कि हमारे शरीर की “सुरक्षा” को कौन रोके रखता है, और क्यों आम इंसान में हर कोई इस तरह के आत्म-आक्रमण का शिकार नहीं बनता।

नोबेल कमिटी का कहना है कि इनकी खोजें “peripheral immune tolerance” यानी शरीर के बाहर भी मौजूद वो तंत्र समझाती हैं जो प्रतिरक्षा को नियंत्रित करता है।

समस्या क्या थी और क्यों बड़ी थी?

हमारी प्रतिरक्षा बहुत ताकतवर है।

इसे बस सही दिशा में रखा जाना चाहिए — बहुत कमज़ोर होगी तो हम बीमार पड़ेंगे, बहुत ज़्यादा सक्रिय होगी तो यह अपने ही अंगों पर वार कर देगी।

पिछले समय में वैज्ञानिकों ने पाया कि थाइमस (thymus) नामक अंग में कुछ नयी-नयी कोशिकाओं की “ट्रेनिंग” होती है ताकि वे पहचान पाएं कि कौन “अपना” है और कौन “दुश्मन”।

इसे कहा गया central tolerance

पर कई autoimmunity के मामले ऐसे थे जहाँ थाइमस की ज़रूरतों से समझ में नहीं आ रहा था कि गलती कहाँ हो रही है — इसलिए ये एक बड़ा खालीपन/रहस्य बना रहा।

यह बड़ा क्यों था?

क्योंकि autoimmune बीमारियाँ बहुत पीड़ादायक और लम्बी चलने वाली होती हैं —

Type 1 Diabetes (जहां इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं), Rheumatoid arthritis (जोड़ों की बिगड़ती हालत), Lupus, Multiple Sclerosis आदि।

इनके इलाज में आज भी दवाइयाँ अक्सर सिर्फ प्रतिरक्षा दबाने पर निर्भर होती हैं — जिससे दूसरी समस्याएँ आतीं (जैसे संक्रमण का खतरा)।

समाधान खोजने के लिए “किसने नियंत्रण रखा” जानना ज़रूरी था — और यही तीनों वैज्ञानिकों ने मिलकर समझाया।

उन्होंने क्या खोजा — सीधे बात में (no jargon)

तीनों वैज्ञानिकों की खोज को हम दो हिस्सों में देख सकते हैं:

Shimon Sakaguchi ने 1995 में दिखाया कि हमारी बॉडी में ऐसी खास टी-कोशिकाएँ होती हैं जो दूसरों टी-कोशिकाओं को नियंत्रित करती हैं —

यानी जब कोई टी-कोशिका ज़्यादा जाग जाती है, तो ये नियंत्रक उसे शांत कर देती हैं।

इन्हें अब कहा जाता है Regulatory T cells। Sakaguchi ने माना कि यह नियंत्रण केवल थाइमस में नहीं होता — शरीर के बाहर भी होता है।

Mary Brunkow और Fred Ramsdell ने 2001 में एक और अहम बात खोली:

उन्होंने पाया कि एक खास जीन Foxp3 बहुत महत्वपूर्ण है।

अगर Foxp3 में गड़बड़ी हो तो Regulatory T cells ठीक से नहीं बनते और शरीर में autoimmune तरह की बीमारियाँ उठ खड़ी होती हैं (एक गंभीर बीमारी IPEX का उदाहरण भी मिला)।

बाद में यह साबित हुआ कि Foxp3 ठीक उसी नियंत्रित टी-कोशिका की “मास्टर स्विच” है।

साधारण भाषा में: Sakaguchi ने “किसे रोकना है” बताने वाली कोशिकाएँ देखीं;

Brunkow और Ramsdell ने बताया कि कौन-सा जीन उन्हीं कोशिकाओं को चलाता है —

और बाद में सब मिला कर एक साफ तस्वीर बनी कि कैसे हमारे शरीर में बाहरी और भीतरी दोनों जगहों पर तंत्र काम करते हैं ताकि हम अपने ही अंगों पर हमला न करें।

यह खोज क्यों मायने रखती है — रोज़मर्रा की जिंदगी में असर

बेहतर इलाज की उम्मीद

अब वैज्ञानिक इस संतुलन (balance) को “मनिपुलेट” कर सकते हैं — यानी autoimmune में नियंत्रण बढ़ाकर रोग के लक्षण घटाए जा सकते हैं।

यह अभी क्लिनिकल ट्रायल के चरणों में है, पर दिशा साफ़ है।

कैंसर के इलाज में मदद: कभी-कभी हमें प्रतिरक्षा प्रणाली को “जागृत” करना चाहिए ताकि वह कैंसर कोशिकाओं को मार सके।

Regulatory T cells को अस्थायी रूप से नियंत्रित कर के इम्यूनोथैरेपियाँ और प्रभावी बन सकती हैं।

ट्रांसप्लांट (Organ transplant): किसी नए अंग को शरीर स्वीकार करना आसान हो सकता है यदि हम समझें कि किस तरह से शरीर “स्वीकार” और “रद” का फैसला करता है।

रोकथाम की दिशा: भविष्य में यह पता चल सकता है कि lifestyle, आहार, माइक्रोबायोम (gut flora) आदि कैसे इन regulatory cells पर असर डालते हैं — यानी रोग आने से पहले रोकने का रास्ता भी खुल सकता है।

क्या यह खोज एकदम नई “मंत्रा” है? — सच बताऊँ तो…

नया-पुराना शब्दों में — Sakaguchi की 1995 वाली खोज ने उस समय का नेक्सस बदल दिया जब बहुत वैज्ञानिक सोच रहे थे कि नियंत्रित होना सिर्फ थाइमस में तय होता है।

Brunkow और Ramsdell ने जीन की गुत्थी खोली। जैसे-जैसे ये बातें जुड़ीं, एक नया क्षेत्र यानी peripheral immune tolerance बन गया — और यही वजह है कि नोबेल ने इन खोजों को ऊँचा दर्जा दिया।

सरल शब्दों में — यह ढांचे का बड़ा हिस्सा था जो मिसिंग था, और इन तीनों ने मिलकर चित्र पूरा कर दिया।

आम आदमी कैसे समझे — एक छोटा-सा उदाहरण

मान लीजिए तुम्हारी प्रतिरक्षा एक गांव की चौकी है।

चौकी के सिपाही रात-दिन लालच, चोरी-छिपे काम होने पर हल्ला करते हैं।

पर चौकी के अंदर एक शख्स है — चौकी-इन-चीफ (Regulatory T cell), जो बताता है — “ये हमारे लोग हैं, ये बाहरवाले हैं।”

अगर ये चौकी-इन-चीफ न हो तो सिपाहियों को पता नहीं चलेगा किसे पकड़ना है और किसे छोड़ना है — और वे गलती से अपने पड़ोसियों को भी पकड़ लेंगे।

Brunkow-Ramsdell-Sakaguchi ने इसी चौकी-इन-चीफ और उसके कंट्रोल सिस्टम की पहचान की।

क्या अब सब कुछ ठीक हो जाएगा? — यथार्थवादी जवाब

नहीं — फ़ौरन नहीं। विज्ञान में “पहचान” बहुत बड़ी बात होती है, पर इलाज और दवा बनने में समय लगता है।

कई दवाइयाँ और थेरेपीज़ इस खोज पर काम कर रही हैं (clinical trials)। कुछ मामलों में इलाज जल्दी दिखेगा, कुछ में साल लगेंगे, और कुछ में जुड़ी जटिलताएँ आएँगी।

फिर भी उम्मीद ज़रूर बढ़ गई है — क्योंकि अब हम समस्या की जड़ समझ गए हैं।

निष्कर्ष — क्यों ये वैज्ञानिक नोबेल के हकदार थे?

क्योंकि उन्होंने एक गहरी और बुनियादी बात समझाई — कि प्रतिरक्षा सिर्फ हमला करने वाला बल नहीं, बल्कि एक संतुलन का तंत्र है; और इस संतुलन को बनाये रखने वाले “नियंत्रक टी-कोशिकाएँ” कितनी अहम हैं।

इस समझ के बिना हम autoimmune, कैंसर इम्यूनोथेरेपी और ट्रांसप्लांट जैसे क्षेत्रों में आगे नहीं बढ़ सकते थे।

इसीलिए Mary E. Brunkow, Fred Ramsdell और Shimon Sakaguchi की खोजें मानवता के लिए बड़े असर वाली हैं — और नोबेल पुरस्कार इसका सम्मान है।

⚠️ Disclaimer (स्पष्टिकरण)

यह लेख केवल शैक्षिक और जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है।

इसमें दिए गए विचार और व्याख्याएँ 2025 के नोबेल पुरस्कार (Medicine/Physiology) की आधिकारिक प्रेस रिलीज़ और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वैज्ञानिक स्रोतों पर आधारित हैं।

यह सामग्री किसी भी चिकित्सकीय निदान, उपचार या दवा-सलाह का विकल्प नहीं है। यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या, लक्षण या बीमारी है, तो कृपया अपने योग्य डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

Health Ki Baat या लेखक इस लेख में दी गई जानकारी के किसी भी व्यक्तिगत उपयोग या गलत व्याख्या के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।

यह लेख केवल जागरूकता बढ़ाने और जटिल वैज्ञानिक खोज को सरल भाषा में समझाने के लिए तैयार किया गया है।