कभी ध्यान दिया है कि अगर कमरे में कोई और आता है तो उसे बदबू आ जाती है,

लेकिन हमें अपनी बदबू का एहसास ही नहीं होता

😅 ऐसा क्यों होता है?

self smell

 असली वजह – घ्राण थकान (Olfactory fatigue)

हमारी नाक लगातार आसपास की गंधों को महसूस करती रहती है।

लेकिन अगर हम लंबे समय तक एक ही गंध में रहें, तो नाक की नसें उस गंध के प्रति सुस्त (desensitize) हो जाती हैं।

नतीजा → हमें अपनी ही बदबू महसूस नहीं होती, लेकिन दूसरे लोग उसे तुरंत पकड़ लेते हैं।

कहाँ ज़्यादा महसूस होता है?

अपने कमरे या घर की बदबू हमें कम लगती है।

अपनी ही बॉडी ओडर (body odour) या पसीने की बदबू भी अक्सर हमें पता नहीं चलती।

परफ़्यूम लगाने पर थोड़ी देर बाद खुद को उसकी खुशबू नहीं आती, लेकिन दूसरों को आती रहती है।

 भ्रांति का सच

कई लोग सोचते हैं कि “अपनी बदबू न आना मतलब बदबू है ही नहीं।”

सच यह है कि बदबू होती है, बस हमारी नाक उसे पहचानना बंद कर देती है।

 झटपट नतीजा

  1. नाक लगातार गंधों के प्रति संवेदनशील नहीं रह पाती।

  2. अपनी गंध को नज़रअंदाज़ करने लगती है।

  3. दूसरों को वही गंध तुरंत महसूस होती है।

तीन आसान चरणों में “अपनी बदबू न आना”

  1. गंध लगातार मिली।

  2. नाक की नसें थक गईं।

  3. गंध महसूस होना बंद।

नतीजा: हमें अपनी गंध नहीं आती, पर दूसरों को साफ़ महसूस होती है।

छोटी सलाह:

  • रोज़ाना नहाना और कपड़े बदलना ज़रूरी है।

  • अगर बॉडी ओडर की समस्या है तो डियोडरेंट या एंटी-पर्सपिरेंट इस्तेमाल करें।

  • कमरे में ताज़ा हवा आने दें।