दोस्तों, आज हम बात करेंगे ऑटिज़्म की।

ये शब्द आपने कई बार सुना होगा,

लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये वाकई में है क्या?

कुछ लोग इसे बीमारी समझते हैं, तो कुछ इसे ‘पागलपन’ का नाम दे देते हैं।

पर असलियत ये है कि ऑटिज़्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन है,

यानी दिमाग का विकास थोड़ा अलग तरीके से होता है।

जैसे, हर कंप्यूटर का ऑपरेटिंग सिस्टम अलग होता है,

वैसे ही ऑटिज़्म वाले लोगों का दिमाग भी दुनिया को देखने-समझने का अपना यूनिक तरीका रखता है।

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ऑटिज़्म को “स्पेक्ट्रम” कहा जाता है,

मतलब हर व्यक्ति में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।

किसी को ज़्यादा सपोर्ट की ज़रूरत पड़ती है,

तो किसी को कम।

पर एक बात सबमें कॉमन है:

ये लोग दुनिया को हमसे अलग नज़रिए से देखते हैं।

जैसे, आपको लाउड म्यूज़िक पसंद हो, पर उनके कानों को वही आवाज़ चुभने लगे।

या फिर आप छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न दें,

पर उन्हें किसी चीज़ का रंग, स्वाद, या बनावट बहुत हैवी लगे।

 

कुछ लोगों को लगता है कि ऑटिज़्म वाले बच्चे या बड़े सिर्फ़ शर्मीले होते हैं,

या फिर उन्हें प्यार नहीं मिला।

ये सब ग़लत धारणाएं हैं!

असल में, ऑटिज़्म वाले लोग भावनाएं तो बहुत गहराई से महसूस करते हैं,

बस उन्हें जताने का तरीका अलग होता है।

जैसे, अगर आप उदास हों, तो वो आपको गले लगाने की बजाय कोई प्रैक्टिकल सलाह दे सकते हैं।

 

ऑटिज़्म के बारे में 5 बड़े मिथक और उनकी सच्चाई

 

  1. वैक्सीन लगवाने से ऑटिज़्म होता है

ये झूठ साल 1998 में एक फ़र्ज़ी रिसर्च से फैला था,

जिसके डॉक्टर का लाइसेंस रद्द कर दिया गया।

आज तक 40 से ज़्यादा स्टडीज़ ने साबित किया है

कि वैक्सीन और ऑटिज़्म का कोई कनेक्शन नहीं है।

असली वजहें जेनेटिक्स या प्रेग्नेंसी के दौरान का माहौल हो सकती हैं।

  1. ऑटिज़्म वालों को दया की ज़रूरत होती है

बिल्कुल नहीं!

ये कोई ट्रैजेडी नहीं, बस जीने का एक तरीका है।

एल्बर्ट आइंस्टीन, ग्रेटा थनबर्ग जैसे लोगों ने ऑटिज़्म के साथ भी दुनिया बदल दी।

  1. ये लोग महसूस नहीं करते

ऑटिज़्म वाले व्यक्ति आपसे ज़्यादा संवेदनशील हो सकते हैं।

उन्हें गाने की आवाज़, रोशनी, या किसी का छूना भी परेशान कर सकता है।

इसीलिए वो कभी-कभी हाथ हिलाते हैं,

चक्कर काटते हैं (इसे ‘स्टिमिंग’ कहते हैं)—

ये उनके शांत होने का तरीका होता है।

  1. बचपन में ठीक हो जाता है

ऑटिज़्म जीवनभर रहने वाली पहचान है।

थेरेपी से कम्युनिकेशन स्किल्स सुधर सकते हैं, पर इसे ‘क्योर’ नहीं किया जा सकता।

  1. ये सब माँबाप की ग़लती है

1950 के दशक में कुछ लोग कहते थे

कि ‘ठंडे रिश्ते’ वाले परिवारों में ऑटिज़्म होता है।

ये बात पूरी तरह झूठी है।

ऑटिज़्म वाले लोगों की मदद कैसे करें?

सबसे पहले,

उन्हें समझने की कोशिश करें।

जैसे, अगर कोई आपकी आँखों में न देखे, तो

उस पर गुस्सा न करें—

हो सकता है, आई कॉन्टैक्ट उसके लिए असहज हो।

या फिर अगर वो एक ही बात बार-बान दोहराए,

तो उसे टोकने की बजाय धैर्य दिखाएं।

ऑटिज़्म वाले बच्चे या बड़े अक्सर अपनी दुनिया में खोए रहते हैं।

जैसे, उन्हें ट्रेनों के नंबर याद हो सकते हैं,

या किसी पेंटिंग में रंगों का कॉम्बिनेशन नोटिस कर लें।

उनकी इन ख़ासियतों को कम न समझें—ये उनकी ताक़त है!

ध्यान रखें: ऑटिज़्म वाले हर व्यक्ति में अलग खूबियाँ और चुनौतियाँ होती हैं।

कोई गाना गा सकता है, तो कोई मैथ्स में एक्सपर्ट।

इसलिए उन्हें ‘ट्रेन वाला बच्चा’ या ‘जीनियस’ जैसे लेबल न दें।

अगर आपका कोई दोस्त या परिवार वाला ऑटिज़्म के साथ जी रहा है,

तो उनसे सीधे पूछें: “आपको किस चीज़ से आराम मिलता है?”

या “मैं कैसे मदद कर सकता हूँ?”

ध्यान दें: कई लोग ‘ऑटिज़्म वाला व्यक्ति’ कहलाना पसंद करते हैं,

क्योंकि ये उनकी पहचान का हिस्सा है।

कुछ आम सवालों के जवाब:

सवाल: क्या बड़े होकर भी ऑटिज़्म का पता चल सकता है?

जवाब: हाँ! आजकल कई एडल्ट्स को पता चल रहा है कि वो ऑटिज़्म के साथ जी रहे हैं।

सवाल: ऑटिज़्म कितना कॉमन है?

जवाब: अमेरिका में हर 36 बच्चों में से 1 को ऑटिज़्म है (CDC, 2023)। भारत में भी आँकड़े बढ़ रहे हैं।

सवाल: क्या ऑटिज़्म वाले बच्चे स्कूल जा सकते हैं?

जवाब: बिल्कुल! बस उन्हें थोड़े एक्स्ट्रा सपोर्ट और समझ की ज़रूरत होती है।

आख़िरी बात:

ऑटिज़्म कोई अभिशाप नहीं,

बस इंसानियत का एक रंग है।

जब हम मिथकों को तोड़ेंगे,

ऑटिज़्म वाले लोगों की आवाज़ सुनेंगे,

और उन्हें ‘ठीक’ करने की बजाय उनका साथ देंगे—तभी हम सच्चे इंसान बन पाएँगे।

तो अगली बार जब कोई ऑटिज़्म वाले व्यक्ति से मिलें,

तो उसके साथ ज़बरदस्ती न करें।

बस थोड़ा प्यार, थोड़ा समय, और बिना शर्त की स्वीकार्यता दें।

याद रखिए: अलग होना ग़लत नहीं होता।