आज जब हम अस्पताल जाते हैं, तो नर्सें एक छोटा-सा प्लास्टिक का कैनुला हमारी नस में लगा देती हैं।
यह इतना आसान और आम काम लगता है कि हम शायद ही इसके बारे में सोचते हैं।
लेकिन जिस कैनुला को हम आज देखते हैं, उसका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है।
यह कहानी है उस छोटे से उपकरण के लंबे सफर की, जिसने चिकित्सा को हमेशा के लिए बदल दिया।

क्रिस्टोफर रेन का पक्षी के पंख और सूअर के मूत्राशय से बना डिवाइस।
एक समय था जब शरीर में तरल पदार्थ डालने के लिए डॉक्टर तरह-तरह के नुकीले औजारों का इस्तेमाल करते थे।
यह एक मुश्किल और दर्दनाक प्रक्रिया थी। इस समस्या को हल करने का पहला गंभीर प्रयास 1656 में क्रिस्टोफर रेन (Christopher Wren) ने किया।
उन्होंने एक पक्षी का पंख और सूअर के मूत्राशय से एक डिवाइस बनाया, जिसका इस्तेमाल जानवरों के शरीर में दवा डालने के लिए किया जाता था।
हालाँकि, यह बहुत टिकाऊ नहीं था और इसे ठीक से फिक्स नहीं किया जा सकता था।

1662 में जेडी मेजर द्वारा पहले सफल मानव इंजेक्शन का चित्रण।
फिर, 1662 में, जेडी मेजर (JD Major) ने पहली बार एक इंसान पर सफल इंजेक्शन लगाया।
उस समय कैनुला के लिए धातु की सुइयों का इस्तेमाल होता था। इन सुइयों की अपनी बहुत सी समस्याएँ थीं:
कठोरता और चोट: धातु की सुइयाँ बहुत कठोर और अविश्वसनीय थीं। उन्हें नस में डालते समय अक्सर नस को नुकसान पहुँचता था और मरीज़ को बहुत दर्द होता था।
संक्रमण का खतरा: इन सुइयों को बार-बार इस्तेमाल किया जाता था। हर बार इस्तेमाल से पहले इन्हें उबालकर या केमिकल से साफ किया जाता था।
अगर यह प्रक्रिया ठीक से न हो, तो संक्रमण का खतरा बना रहता था।
असुविधा: मरीज़ के लिए धातु की सुई के साथ हिलना-डुलना बहुत मुश्किल था, क्योंकि इससे सुई हिल सकती थी और नस से बाहर निकल सकती थी।
लेकिन, इस क्षेत्र में असली क्रांति 1945 में आई, जब प्लास्टिक का आविष्कार हुआ।
यह एक बहुत बड़ा बदलाव था, क्योंकि प्लास्टिक की सुइयाँ लचीली होती थीं, जिससे नस में चोट लगने का खतरा कम हो गया।
1950 में, डेविड मासा (David Massa) ने “रोचेस्टर नीडल” (Rochester Needle) नाम की एक प्लास्टिक की सुई बनाई, जो आज के कैनुला जैसी थी।

डेविड मासा द्वारा ‘रोचेस्टर नीडल’ का आविष्कार, जिसने चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी।
प्लास्टिक के कैनुला आने के बाद भी एक बहुत बड़ी समस्या थी। कैनुला लगाना सिर्फ डॉक्टर का काम था, और वे हमेशा उपलब्ध नहीं होते थे।
नतीजतन, मरीज़ों को IV सलूशन मिलने में देरी होती थी।
मिस एडा प्लुमर (Miss Ada Plumer), जो 1940 में मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में मुख्य नर्स थीं, उन्होंने इस समस्या को देखा।
वह जानती थीं कि नर्सें लगातार मरीज़ों के पास होती हैं, और अगर उन्हें यह काम करने की इजाज़त मिल जाए तो मरीज़ों की जान बचाई जा सकती है।
उन्होंने इस बात के लिए बहुत संघर्ष किया।
उन्होंने डॉक्टर हेनरी बीचर के साथ मिलकर एक ऐसा ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाया, जहाँ नर्सों को IV सलूशन देना सिखाया जाता था।
यह एक बहुत ही क्रांतिकारी और विवादास्पद (controversial) विचार था।
आखिरकार, अस्पताल ने उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और नर्सों को सख्त ट्रेनिंग के बाद यह काम करने की इजाज़त दी।
यह साबित हुआ कि नर्सें इस काम को सुरक्षित और प्रभावी तरीके से कर सकती हैं।
धीरे-धीरे, 1970 के दशक के आखिर तक, कैनुला लगाना नर्सिंग का भी एक अहम हिस्सा बन गया।
यह एक ऐसी कहानी है जो हमें सिखाती है कि कैसे एक नर्स के अवलोकन और साहस ने चिकित्सा में एक क्रांति ला दी।
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