क्या कभी आपने सोचा है कि अगर किसी को इमरजेंसी में खून की ज़रूरत पड़े, तो वो कहाँ से आता है?

आधी रात को, या फिर किसी ऐसे इलाके में जहाँ तुरंत कोई डोनर न मिले?

आज ब्लड बैंक की जो सुविधा हम देखते हैं, वो एक दिन में नहीं बनी।

first blood bank

वैज्ञानिकों ने सोडियम साइट्रेट की मदद से खून को जमने से रोकना सीख लिया था।

अब खून को शरीर से बाहर निकालकर बोतल में रखा जा सकता था। पर यह सिर्फ आधी जीत थी।

सोचिए, अगर किसी को आधी रात में खून की ज़रूरत पड़े, तो कहाँ मिलेगा?

क्या डॉक्टर हर रात खून की बोतलें तैयार करके रखते? यह बिल्कुल भी व्यावहारिक (practical) नहीं था।

इसी समस्या को सुलझाने के लिए एक बहुत ही ज़रूरी सिस्टम की ज़रूरत थी, जिसे हम आज ब्लड बैंक कहते हैं।

एक नई सोच और एक महान वैज्ञानिक

इस काम को अंजाम दिया एक दूरदर्शी अमेरिकी सर्जन डॉ. चार्ल्स ड्रू ने।

1930 के दशक में, वह एक ऐसी व्यवस्था बनाने पर काम कर रहे थे जहाँ खून को इकट्ठा करके, प्रोसेस करके और स्टोर करके रखा जा सके।

डॉ. ड्रू ने सिर्फ पूरे खून (whole blood) पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि उन्होंने खून के प्लाज्मा (liquid part of blood) पर भी काम किया।

उन्होंने पाया कि प्लाज्मा को पूरे खून से ज़्यादा समय तक स्टोर किया जा सकता है।

डॉ. ड्रू ने एक ऐसा सिस्टम बनाया जिसमें खून को जमा करके और प्लाज्मा को अलग करके उसे सुखाया (dried) जा सकता था।

सूखे हुए प्लाज्मा को किसी भी जगह आसानी से भेजा जा सकता था, और ज़रूरत पड़ने पर उसमें पानी मिलाकर इस्तेमाल किया जा सकता था।

पहला ब्लड बैंक और विश्व युद्ध

डॉ. चार्ल्स ड्रू की इस मेहनत का नतीजा था 1937 में अमेरिका के प्रिस्बिटेरियन अस्पताल (Presbyterian Hospital) में दुनिया का पहला बड़ा ब्लड बैंक स्थापित होना।

यह कोई छोटी-मोटी लैब नहीं थी, बल्कि एक पूरी व्यवस्था थी जहाँ खून का दान लिया जाता था, उसे प्रोसेस किया जाता था, और उसे ज़रूरत के अनुसार स्टोर किया जाता था।

इस खोज का असली महत्व दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साबित हुआ।

जब युद्ध के मैदान में घायल सैनिकों को तुरंत खून की ज़रूरत होती थी, तो डॉ. ड्रू की बनाई हुई व्यवस्था ने लाखों जान बचाईं।

उन्हें “ब्लड फॉर ब्रिटेन” (Blood for Britain) जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स का इंचार्ज बनाया गया, जहाँ उन्होंने हज़ारों लीटर खून अमेरिका से ब्रिटेन तक भेजा।

सबसे बड़ी सीख

ब्लड बैंक की इस खोज ने यह साबित कर दिया कि एक इंसान का खून सिर्फ उसी के लिए नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसा संसाधन है जिसे बाँटा और सहेजा जा सकता है।

डॉ. चार्ल्स ड्रू ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी आपातकालीन स्थिति में, खून की कमी के कारण किसी की जान न जाए।

इस तरह, ब्लड बैंक ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन के सफर को पूरा किया—यह एक ऐसी व्यवस्था थी जिसने खून को सिर्फ एक इलाज नहीं, बल्कि एक जीवन-रक्षक संसाधन बना दिया।

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