ये तो बिल्कुल घर-घर की कहानी है. जब हम देखते हैं कि ‘मेरा Gen Z बेटा मुझसे ज़्यादा बूढ़ा लगता है,’ तो बात सिर्फ़ दिखने की नहीं रह जाती, ये एक ऐसी चुभन है जो हर माँ-बाप महसूस करते हैं.
सौरभ अधाने के मीडियम वाले लेख ने जो बात छेड़ी है कि कैसे आज की Gen Z पीढ़ी Millennials (यानी हम जैसे लोग) से ज़्यादा तेज़ी से “दूध की तरह” बूढ़ी दिख रही है, वो खाली किताबी बात नहीं है.
ये हमारी आँखों के सामने हो रहा है. ये एक ऐसी सच्चाई है जिसे हम रोज़ अपने बच्चों में, उनके दोस्तों में, और यहाँ तक कि खुद में भी महसूस कर रहे हैं.
तो आइए, इसी बात को थोड़ा और दिल से, और थोड़ा और अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जोड़कर देखते हैं.
Table of Contents
बेटा, तुम आजकल बड़े क्यों दिखते हो?” – सोशल मीडिया का दबाव
सौरभ अधाने के मीडियम पर लिखे लेख ने एक दिलचस्प बात सामने रखी है:
कि Gen Z अक्सर Millennials की तुलना में अपनी उम्र से ज़्यादा बड़ा या तेज़ी से उम्रदराज़ दिखता है.
ये किसी को जज करने वाली बात नहीं है, बल्कि एक संभावित सामाजिक बदलाव को समझने की कोशिश है.
इस सोच के पीछे क्या वजह हो सकती है?
लेख कुछ ज़बरदस्त बातों की तरफ इशारा करता है, और उनमें से हर एक को गहराई से समझने पर पता चलता है कि आधुनिक जीवन, टेक्नोलॉजी, और शरीर-विज्ञान का एक जटिल मेल है.
अधाने ने Instagram (इंस्टाग्राम) जैसे प्लेटफॉर्म्स की बहुत बड़ी भूमिका को सही पकड़ा है.
याद है हमें? हमारे टाइम में तो 14-15 साल की उम्र में हमें यही फ़िक्र होती थी कि होमवर्क कैसे पूरा करें, दोस्त के साथ गिल्ली-डंडा खेलने कब जाएँ, या छुप-छुप के कोई फ़िल्म कैसे देख लें.
लेकिन आज के बच्चों को देखो. सौरभ अधाने ने सही कहा है, 14 साल की बच्ची ऐसे दिखती है जैसे 25 साल की मॉडल हो! और क्यों?
सेल्फ़ी की दुनिया (Selfie World)
ये बच्चे अपनी सेल्फ़ी और रील्स (reels) के लिए घंटों तैयार होते हैं. मेकअप ऐसा कि बड़े-बड़ों को मात दे दें, कपड़े ऐसे कि पता ही न चले उम्र क्या है.
ये सब क्यों? क्योंकि उन्हें ‘कूल’ दिखना है, ‘फॉलोअर्स’ (followers) बढ़ाने हैं, और दुनिया को दिखाना है कि वो कितने ‘ग्लैमरस’ (glamorous) हैं.
इस सब चक्कर में, बचपन कहीं छूट जाता है और चेहरा उम्र से पहले मैच्योर (mature) दिखने लगता है.
दिखावे की होड़ (Competition of Appearance)
जब मेरा बेटा या बेटी किसी और बच्चे की ‘परफेक्ट’ प्रोफ़ाइल देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि उन्हें भी वैसा ही दिखना है.
इस दिखावे की होड़ में, वे अपनी उम्र से पहले ही बड़े दिखने की कोशिश करते हैं, और ये कोशिश उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आने लगती है.
ये सिर्फ़ मेकअप नहीं, ये एक तरह का साइकोलॉजिकल (psychological) दबाव है जो उन्हें समय से पहले बड़ा कर रहा है.
खुद का “प्रदर्शन” (Performance)
सोशल मीडिया अक्सर ज़िंदगी को एक परफॉरमेंस बना देता है.
परफेक्ट एंगल वाली सेल्फी से लेकर सावधानी से कोरियोग्राफ किए गए डांस रूटीन तक, एक दोषमुक्त, अक्सर सेक्शुअलाइज़्ड (sexualized) या बहुत ज़्यादा ग्लैमरस (glamorous) खुद को दिखाने का जबरदस्त दबाव होता है.
अपनी पहचान बना रहे युवा लोगों के लिए, ये उन्हें जल्दी बड़ा दिखने की चाह में धकेल सकता है, जिससे वे समय से पहले ही बड़ों जैसी चीज़ें अपना लेते हैं.
फिल्टर्स और फेसट्यून (Facetune) का ज़माना
सिर्फ़ मेकअप ही नहीं, फिल्टर्स और एडिटिंग (editing) ऐप्स का हर जगह इस्तेमाल का मतलब है कि युवा लोग लगातार खुद की और दूसरों की डिजिटल रूप से बदली हुई इमेज देखते और बनाते हैं.
ये “सामान्य” दिखावट के बारे में उनकी सोच को बिगाड़ देता है, जिससे शायद बॉडी डिस्मोर्फिया (body dysmorphia) हो सकता है
और कम उम्र में ही भारी मेकअप या यहाँ तक कि कॉस्मेटिक प्रोसीजर (cosmetic procedures) पर ज़्यादा निर्भरता बढ़ सकती है
ताकि वे असल ज़िंदगी में उन अवास्तविक लुक्स को पाने की कोशिश कर सकें.
लगातार तुलना (Constant Comparison)
अधाने ने इस पर बात की है: “बहुत सारी 14 साल की लड़कियाँ जो ये वीडियो देखती हैं, उन्हें बुरा लगेगा.” यही इसकी जड़ है.
हर स्क्रॉल (scroll) एक नई तुलना का बिंदु हो सकता है, जिससे चिंता, कम आत्मविश्वास और अपर्याप्तता की भावना पैदा हो सकती है यदि कोई अपनी फीड में भरे हुए आदर्शवादी इमेजेस पर खरा नहीं उतरता है.
ये लगातार तनाव, जैसा कि हम देखेंगे, के असली शारीरिक प्रभाव हो सकते हैं.
Also Read: Saiyaara Heartbreak? 7 Ways Gen Z Can ‘Glow Up’ & Heal
नज़रें हटती नहीं फ़ोन से!” – स्क्रीन टाइम का कहर
याद है जब इंटरनेट एक लक्जरी (luxury) हुआ करता था?
अधाने का यह कहना कि Millennials के लिए “1GB महीना” मिलता था जबकि Gen Z के लिए इंटरनेट “पानी की बोतल से भी सस्ता” है, बिल्कुल सही है.
यह सिर्फ पहुँच की बात नहीं है; यह लगातार डूबे रहने की बात है. Gen Z, बड़े पैमाने पर, हमेशा ऑनलाइन रहता है, हमेशा कनेक्टेड (connected) रहता है.
मेरा बेटा स्कूल से आते ही फ़ोन में घुस जाता है. हर वक़्त ऑनलाइन रहना, कुछ न कुछ स्क्रॉल (scroll) करते रहना – इसका असर सिर्फ़ आँखों पर नहीं, पूरे शरीर पर पड़ता है.
ब्लू लाइट और नींद में रुकावट
स्क्रीन के लगातार संपर्क में रहना, खासकर सोने से पहले, शरीर के प्राकृतिक नींद चक्र को बाधित करता है, मेलोटोनिन (melatonin) उत्पादन को दबाकर.
मेलोटोनिन सिर्फ नींद के लिए ही नहीं, बल्कि शरीर की पूरी मरम्मत और रीजनरेशन (regeneration) के लिए भी एक महत्वपूर्ण हार्मोन है.
अच्छी नींद की पुरानी कमी से त्वचा बेजान, आँखें थकी हुई और आम तौर पर “बूढ़ा” दिखने लग सकता है.
मानसिक अधिभार और संज्ञानात्मक तनाव (Mental Overload and Cognitive Strain)
अधाने ने जिस “बिना सोचे-समझे स्क्रॉलिंग” का ज़िक्र किया है, वह दिमाग के लिए उतना भी बिना सोचे-समझे नहीं होता.
यह जानकारी, नोटिफिकेशन और उत्तेजनाओं का लगातार प्रवाह है. मानसिक जुड़ाव की यह स्थायी स्थिति, भले ही निष्क्रिय हो, मानसिक थकान और तनाव में योगदान कर सकती है.
कुछ शोध बताते हैं कि यह अति-उत्तेजना मस्तिष्क के विकास और कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती है, हालाँकि अधिक दीर्घकालिक अध्ययनों की आवश्यकता है.
शारीरिक निष्क्रियता (Physical Inactivity)
ऑनलाइन ज़्यादा समय बिताने का मतलब अक्सर बाहर, खेलने या शारीरिक गतिविधि में कम समय बिताना होता है.
यह निष्क्रिय जीवनशैली खराब शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान करती है, जो दिखावट में प्रकट हो सकती है.
जेन ज़ी स्टेर (Gen Z Stare): खालीपन, या कोई और गहरी बात?
ये तो अभी से जवान दिखने लगा!” – हार्मोनल बदलाव और पर्यावरण का असर
ये वो बात है जो सबसे ज़्यादा हैरान करती है. सौरभ अधाने ने कहा कि जब Millennials 13-14 साल के थे, तो बच्चे ही लगते थे.
लेकिन आज उसी उम्र की लड़कियाँ ’22 साल की फुल-ग्रोन (full-grown) महिला जैसी’ दिखती हैं, और लड़के तो 10वीं क्लास में ही पूरी दाढ़ी वाले दिखते हैं!
ये सच है, मैंने खुद अपने बेटे के दोस्तों में ये देखा है. ये सिर्फ़ दिखने की बात नहीं, इसके पीछे कुछ गहरे कारण हो सकते हैं.
यह सिर्फ एक किस्सागोई (anecdotal) अवलोकन नहीं है; समय से पहले यौवन (precocious puberty) और जल्दी परिपक्वता के बारे में बढ़ती वैज्ञानिक चर्चा है.
प्रदूषण और रसायन (Chemicals) (एंडोक्राइन डिसरप्टर्स)
आजकल हम जो खाते हैं, जो पानी पीते हैं, यहाँ तक कि जिन प्लास्टिक के बर्तनों में खाते हैं, उनमें कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो हमारे शरीर के हॉर्मोन्स (hormones) को प्रभावित कर सकते हैं.
ये ‘एंडोक्राइन डिसरप्टर्स (endocrine disruptors)’ होते हैं जो समय से पहले यौवन (puberty) शुरू कर सकते हैं.
आहार और मोटापा (Diet and Obesity)
जंक फ़ूड (junk food) और प्रोसेस्ड फ़ूड (processed food) का चलन बढ़ गया है.
बचपन का मोटापा भी एक कारण हो सकता है, क्योंकि शरीर में ज़्यादा फैट (fat) होने से हॉर्मोन्स का संतुलन बिगड़ सकता है, खासकर लड़कियों में.
ऑनलाइन कंटेंट (Online Content)
अधाने ने ‘सेक्स-ओरिएंटेड कंटेंट’ (sex-oriented content) की बात कही है.
कम उम्र में ऐसी चीज़ें देखने से बच्चों के दिमाग और शरीर पर असर पड़ता है, और वे अपनी उम्र से पहले ही बड़ों जैसा दिखने की कोशिश करने लगते हैं.
किशोर में “बड़ा दिखने की चाह” ऑनलाइन ट्रेंड्स (trends) से बढ़ सकती है.
फ़िक्र में दुबले हुए जा रहे हैं बच्चे!” – तनाव और खान-पान की गलत आदतें
मेरा बेटा अक्सर मुझे बताता है कि उसे स्कूल में या दोस्तों के बीच कैसा दिखना है, कौन से ब्रांड (brand) के कपड़े पहनने हैं, कितने फॉलोअर्स होने चाहिए.
अधाने कहते हैं कि “Gen Z ज़्यादा तनावग्रस्त पीढ़ी है,” और इसे “साथियों से लगातार तुलना” और “कम उम्र में अमीर बनने के तनाव” से जोड़ते हैं.
लगातार तनाव और उसका शारीरिक नुकसान
लंबे समय तक रहने वाला तनाव, चाहे वह पढ़ाई के दबाव से हो, सोशल मीडिया की चिंता से हो, या जल्दी सफलता पाने की महसूस की गई ज़रूरत से हो, इसके ठोस शारीरिक प्रभाव होते हैं.
यह नींद को बाधित कर सकता है, पाचन को प्रभावित कर सकता है, और यहाँ तक कि त्वचा के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है (जैसे तनाव से होने वाले मुँहासे या बेजान त्वचा).
शरीर का “लड़ो या भागो” (fight or flight) प्रतिक्रिया, जब लगातार सक्रिय रहती है, तो सूजन (inflammation) में योगदान कर सकती है और सेलुलर एजिंग (cellular aging) को तेज़ कर सकती है.
अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का सुविधा जाल (The Convenience Trap of Ultra-Processed Foods)
अधाने इस बात पर जोर देते हैं कि “50 प्रतिशत ऑनलाइन ऑर्डर Gen Z से होते हैं,” जिसका अक्सर मतलब “बाहर का खाना” और “जंक फूड” पर निर्भरता होता है.
यह सिर्फ सुविधा की बात नहीं है; यह पोषण घनत्व (nutritional density) की बात है.
पोषक तत्वों की कमी (Nutrient Deficiencies)
प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा से भरपूर आहार में अक्सर स्वस्थ त्वचा, बालों और समग्र जीवन शक्ति के लिए आवश्यक विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सिडेंट की कमी होती है.
सूजन (Inflammation)
ये आहार शरीर में पुरानी सूजन का कारण बन सकते हैं, जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में योगदान करती है
और निश्चित रूप से कम जीवंत त्वचा और सामान्य रूप से अस्वस्थ महसूस करने में प्रकट हो सकती है, जिससे व्यक्ति अपनी उम्र से अधिक उम्र का दिख सकता है.
मोटापा और संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ (Obesity and Related Health Issues)
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, खराब आहार सीधे बढ़ते मोटापे की दरों में योगदान करता है, जो कई स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े हैं जो किसी को उनकी उम्र से अधिक उम्र का दिखा सकते हैं.
What’s the Takeaway?
सौरभ अधाने का लेख एक बड़ी बातचीत के लिए एक महत्वपूर्ण शुरुआती बिंदु का काम करता है.
जबकि “दूध की तरह बूढ़ा होना” एक आकर्षक, हालांकि उत्तेजक, वाक्यांश है, यह एक वास्तविक चिंता को रेखांकित करता है.
यह सिर्फ़ बड़ा दिखने के बारे में नहीं है;
यह एक पूरी पीढ़ी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर डिजिटल रूप से संतृप्त (saturated), अत्यधिक दबाव वाली दुनिया के संभावित प्रभावों के बारे में है.
जब हम कहते हैं कि ‘मेरा Gen Z बेटा मुझसे ज़्यादा बूढ़ा लगता है,’ तो ये सिर्फ़ एक दिखने वाली बात नहीं है,
ये एक संकेत है कि हमारी नई पीढ़ी एक ऐसे माहौल में पल-बढ़ रही है जहाँ दबाव, स्क्रीन और ग़लत लाइफस्टाइल (lifestyle) उन्हें समय से पहले ही थका रहे हैं.
यह घटना Gen Z की अपनी विफलता नहीं है,
बल्कि उस माहौल का प्रतिबिंब है जिसमें वे बड़े हो रहे हैं.
इन कारकों को समझना उन्हें संबोधित करने की दिशा में पहला कदम है, चाहे वह स्वस्थ स्क्रीन आदतों को बढ़ावा देना हो, सोशल मीडिया के दबावों के प्रति लचीलापन पैदा करना हो,
या अधिक संतुलित जीवन शैली को प्रोत्साहित करना हो.
आपको क्या लगता है, क्या आपके आसपास भी ये बदलाव दिख रहे हैं?
(Disclaimer: AI Gemini helped refine this content for clarity.)
#GenZAging #ScreenTimeEffects #ParentingTips #MillennialsVsGenZ #SocialMediaImpact
Leave A Comment