आज जब हम इंसुलिन के injection पेन या पेनकिलर के छोटे कैप्सूल देखते हैं, तो हम यह सोच भी नहीं सकते कि दवा को शरीर के अंदर पहुँचाना कितना मुश्किल था।

हम आज एक सुई और एक प्लंजर के आसान से काम को इतना हल्के में लेते हैं कि हम यह भूल जाते हैं कि एक समय था जब यह एक क्रांतिकारी विचार था।

यह कहानी उसी सफर की है, जिसने हमें इंजेक्शन के आधुनिक युग तक पहुँचाया

Alexander Wood in 1873

Image Credit: https://alumni.ed.ac.uk/services/notable-alumni/alumni-in-history/alexander-wood

दर्द की वो चुनौती, जिसका कोई जवाब नहीं था

1850 के दशक की बात है। उस समय, सर्जरी के लिए तो एनेस्थीसिया (anaesthesia) का इस्तेमाल शुरू हो चुका था, लेकिन लगातार और भयानक दर्द के लिए कोई प्रभावी तरीका नहीं था। यहाँ एक बहुत बड़ा अंतर था:

एनेस्थीसिया का काम मरीज को पूरी तरह से बेहोश करना था ताकि वह ऑपरेशन के दौरान दर्द महसूस न करे। यह एक जटिल और जोखिम भरा तरीका था, जिसे सिर्फ बड़ी सर्जरी के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

लेकिन डॉ. वुड का मकसद अलग था। वह मरीजों के क्रोनिक और localised (किसी खास जगह पर) दर्द को दूर करना चाहते थे, जैसे कि नसों का दर्द (neuralgia)।

ऐसे दर्द के लिए किसी को बेहोश करना न तो व्यावहारिक था और न ही सुरक्षित। उन्हें एक ऐसे तरीके की तलाश थी जो मरीज को सचेत रखते हुए सिर्फ दर्द वाली जगह पर ही असर करे।

डॉ. अलेक्जेंडर वुड (Dr. Alexander Wood), जो एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से ही निकले थे, अपने साथी जेम्स यंग सिम्पसन के एनेस्थीसिया पर किए गए काम से बहुत प्रेरित थे।

उनका मुख्य मकसद दर्द को ‘स्थानीय’ रूप से राहत देने का तरीका खोजना था।

 

एक क्रांतिकारी विचार और दो आविष्कारक

डॉ. वुड का विचार यह था कि दवा को सीधे त्वचा के नीचे या नस में डाला जाए। इसके लिए उन्होंने एक ऐसा उपकरण बनाया जिसमें एक खोखली सुई (hollow needle) एक पारदर्शी नली (glass barrel) से जुड़ी थी।

उनकी यह खोज एक ऐसी यात्रा का हिस्सा थी जहाँ कुछ और वैज्ञानिक भी इसी तरह के विचार पर काम कर रहे थे।

  1. फ्रांसिस रायंड (Francis Rynd): 1844 में, उनके सहकर्मी और सर्जन डॉ. फ्रांसिस रायंड ने एक डिवाइस बनाया था, जिसे उन्होंने दर्द वाली जगह पर दवा डालने के लिए इस्तेमाल किया। यह उपकरण ‘ट्रोकार सिरिंज’ कहलाता था। हालाँकि, यह आधुनिक सिरिंज जैसा नहीं था, लेकिन यह इस दिशा में एक शुरुआती कदम था।
  2. चार्ल्स-गेब्रियल प्रावाज़ (Charles-Gabriel Pravaz): उसी समय, फ्रांस में एक और सर्जन चार्ल्स-गेब्रियल प्रावाज़ ने भी एक सिरिंज बनाई थी, जो लकड़ी और चाँदी की बनी थी। उनकी सिरिंज में पिस्टन की जगह एक स्क्रू (screw) का इस्तेमाल होता था। लेकिन डॉ. वुड की सिरिंज को ज़्यादा सफलता मिली, क्योंकि वह शीशे की बनी थी, जिससे डॉक्टर दवा की मात्रा को देख सकते थे।

पहला ऑल-ग्लास सिरिंज का जन्म

hypodermic syringe

Image Credit: Hypodermic syringe, England, 1855-1865 (Science Museum, London).\nCredit: Wellcome Collection. Attribution 4.0 International (CC BY 4.0). Available: https://alumni.ed.ac.uk/services/notable-alumni/alumni-in-history/alexander-wood

डॉ. वुड ने एक खोखली सुई और एक प्लंजर (plunger) को जोड़कर एक उपकरण बनाया। लेकिन उनका सबसे बड़ा आविष्कार यह था कि उन्होंने पहली बार ऑल-ग्लास सिरिंज बनाई, जिसमें एक बारीक हड्डी की सुई लगी थी।

इस ऑल-ग्लास सिरिंज की वजह से डॉक्टरों को यह पता लगने लगा कि वे कितनी दवा दे रहे हैं, क्योंकि वे शीशे के पार से तरल पदार्थ की मात्रा देख सकते थे।

इस आविष्कार से छोटी और सटीक खुराक देना संभव हो गया।

चुनौतियाँ और एक नई दुनिया की शुरुआत

डॉ. वुड की खोज को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा:

चिकित्सा जगत का विरोध: उस समय के कई डॉक्टर सीधे नस में दवा डालने को खतरनाक मानते थे।

लत का डर: मॉर्फिन एक शक्तिशाली दवा थी और इस बात का डर था कि इंजेक्शन देने से लत और भी बढ़ सकती है।

इन चुनौतियों के बावजूद, डॉ. वुड अपनी खोज पर अडिग रहे। उन्होंने अपनी पहली मरीज़, एक 80 साल की महिला, जो न्यूराल्जिया से पीड़ित थीं, को मॉर्फिया (शराब में घुली हुई मॉर्फिन) का इंजेक्शन दिया।

यह प्रयोग सफल रहा।

इसी तरह, डॉ. अलेक्जेंडर वुड ने दुनिया की पहली हाइपोडर्मिक सिरिंज (hypodermic syringe) का आविष्कार और उपयोग किया।

उनकी यह खोज, जो एक दर्द को दूर करने की इच्छा से शुरू हुई थी, आज हर अस्पताल और क्लिनिक की सबसे ज़रूरी ज़रूरत बन गई है।

 

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