आज जब कोई बीमार होता है और उसे खून की ज़रूरत पड़ती है, तो हम बिना सोचे-समझे ब्लड बैंक जाते हैं या डोनेट कर देते हैं।

यह एक आम बात लगती है, है ना? पर क्या आपको पता है, एक समय ऐसा था जब खून चढ़ाना मौत को दावत देने जैसा था!

और इस खतरनाक सफर की शुरुआत की थी एक फ्रांसीसी डॉक्टर ने, जिनका नाम था जीन-बाप्तिस्ट डेनिस

उनकी कहानी हिम्मत, उम्मीद और एक दुखद गलती की कहानी है जिसने चिकित्सा विज्ञान को एक नई दिशा दी।

jean baptist denis

विलियम हार्वे ने दिया आइडिया

आपको याद है, हमने बात की थी विलियम हार्वे की?

उन्होंने 1628 में एक क्रांतिकारी खोज करके दुनिया को चौंका दिया था।

उस समय, लोग मानते थे कि हमारा खून शरीर में एक ‘वन-वे’ सड़क की तरह बहता है, जो लिवर में बनता है और इस्तेमाल होकर खत्म हो जाता है।

इसी सोच की वजह से, ब्लडलेटिंग (शरीर से खराब खून निकालना) जैसी खतरनाक प्रथाएं प्रचलित थीं।

लेकिन हार्वे ने गणित के आधार पर साबित किया कि खून एक बंद लूप में दिल से शुरू होकर पूरे शरीर में घूमता है।

इस खोज ने डेनिस जैसे लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।

उन्होंने सोचा, “अगर खून घूमता रहता है, तो क्यों न किसी कमजोर या बीमार इंसान में बाहर से खून डालकर उसे फिर से ताकत दे दी जाए?

” सोचिए ज़रा, यह उस समय कितनी बड़ी और क्रांतिकारी सोच थी, जब डॉक्टर अभी भी पुराने अंधविश्वासों में जी रहे थे।

भीड़ के सामने पहला प्रयोग: एक चमत्कार

 

17वीं सदी का एक डॉक्टर एक बीमार लड़के को खून चढ़ा रहा है, जिसके पास एक भेड़ खड़ी है। आसपास कुछ लोग इस दृश्य को देख रहे हैं।

1667 में जीन-बैप्टिस्ट डेनिस द्वारा भीड़ के सामने भेड़ के खून का पहला सफल प्रयोग, जिससे एक बीमार लड़का ठीक हो गया।

साल था 1667। डेनिस ने पेरिस में अपना पहला प्रयोग करने की हिम्मत जुटाई।

उन्होंने एक 15 साल के बीमार लड़के को चुना, जो लगातार बुखार और बीमारी से कमज़ोर हो चुका था।

डेनिस ने यह फैसला किया कि वह इस लड़के को एक भेड़ का खून चढ़ाएंगे। उनका तर्क था कि भेड़ शांत स्वभाव की होती है, तो शायद उसका खून उस लड़के में नया जीवन भर सके।

आप मानेंगे नहीं, यह प्रयोग सफल रहा! लड़का ठीक हो गया और चारों तरफ डेनिस का नाम हो गया।

यह पहली बार था जब इंसानी शरीर में किसी दूसरे जीव का खून डाला गया था, और वो इंसान बच गया था।

यह खबर पूरे यूरोप में आग की तरह फैल गई। लोग डेनिस को जादूगर समझने लगे थे और चिकित्सा विज्ञान में एक नई क्रांति की उम्मीद जग उठी थी।

उनकी सफलता से प्रभावित होकर कई और वैज्ञानिकों ने भी जानवरों का खून इंसानों पर चढ़ाने का प्रयोग करना शुरू कर दिया, लेकिन उन सभी के नतीजे डेनिस जैसे भाग्यशाली नहीं थे।

जब किस्मत ने दिया धोखा: एंटोनी माउरॉय की दुखद कहानी

डेनिस की किस्मत तब धोखा दिया जब उन्होंने एक और मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति, एंटोनी माउरॉय, पर यह प्रयोग दोहराया

उस समय, मानसिक बीमारी को ‘खराब खून’ का नतीजा माना जाता था, और डॉक्टरों को लगता था कि नया खून चढ़ाने से इसका इलाज हो सकता है।

माउरॉय को पहली बार बछड़े का खून चढ़ाया गया और वह बच गया।

दूसरी बार भी वह बच गया, पर तीसरी बार खून चढ़ाने के बाद उसकी हालत बिगड़ती चली गई और अंत में उसकी मौत हो गई।

माउरॉय की पत्नी ने तुरंत डेनिस पर आरोप लगाया कि उन्होंने जानबूझकर उसके पति को ज़हर दिया है। इस घटना से पूरे यूरोप में हंगामा मच गया।

लोगों का डॉक्टरों से भरोसा उठने लगा और डेनिस पर मुक़दमा चला

एक ऐतिहासिक गलती और एक कड़ा सबक

जांच में यह साबित हुआ कि डेनिस ने जानबूझकर कुछ गलत नहीं किया था, लेकिन माउरॉय की मौत उसी प्रयोग की वजह से हुई थी।

आधुनिक विज्ञान हमें बताता है कि माउरॉय की मौत हेमोलिटिक रिएक्शन (hemolytic reaction) की वजह से हुई थी।

जब किसी अलग प्रजाति का खून शरीर में जाता है, तो शरीर का इम्यून सिस्टम उसे दुश्मन समझकर उस पर हमला कर देता है।

इससे खून के कण आपस में चिपक जाते हैं और नसें ब्लॉक हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति की मौत हो जाती है।

इस घटना के बाद, 1670 में, पेरिस की अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया  कि अब से किसी भी व्यक्ति पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं किया जाएगा।

फ्रांस के बाद, इंग्लैंड और रोम ने भी इस पर प्रतिबंध लगा दिया।

डेनिस की ये कहानी भले ही एक दुखद मोड़ पर खत्म हुई, लेकिन इसने दुनिया को एक बहुत बड़ा सबक दिया: जानवरों का खून इंसानों के लिए सुरक्षित नहीं है!

यह बात बहुत ज़रूरी थी कि कोई इसे प्रयोग करके दिखाए, भले ही उसका अंजाम अच्छा न हो। उनकी इस गलती ने ही बाद में वैज्ञानिकों को सही रास्ता ढूँढने के लिए प्रेरित किया।

अगले कदम की तैयारी

डेनिस की हिम्मत ने खून चढ़ाने के विचार को जिंदा रखा, लेकिन उनकी असफलता ने एक नया सवाल खड़ा कर दिया: अगर जानवरों का खून काम नहीं करता, तो क्या इंसानों का खून इंसानों को चढ़ाया जा सकता है?

इस सवाल का जवाब खोजने के लिए 150 साल बाद एक और डॉक्टर आया, जिसका नाम था जेम्स ब्लंडेल, और उनकी कहानी में भी बहुत सी चुनौतियाँ और रोमांच छिपा है।

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अस्वीकरण (Disclaimer)

कृपया ध्यान दें: यह ब्लॉग पोस्ट केवल जानकारी और ऐतिहासिक उद्देश्यों के लिए है।

इसका उद्देश्य किसी भी तरह की चिकित्सा सलाह या इलाज देना नहीं है। स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए हमेशा योग्य डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लें।