हाल ही में न्यूयॉर्क सिटी में एक बीमारी ने कई लोगों को बीमार किया है, जिसके बारे में शायद आपने भी सुना होगा.

ये बीमारी है लेजिओनेयर्स’ डिजीज Legionnaires’ Disease. यह सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी है.

लेकिन डरने की ज़रूरत नहीं है. अगर हमें इसके बारे में पूरी जानकारी हो, तो हम इससे बच सकते हैं.

आज इस ब्लॉग में, हम इसी बीमारी को बिल्कुल आसान भाषा में समझेंगे.

लेजिओनेयर्स’ डिजीज क्या है?

यह एक तरह का निमोनिया है जो लेजिओनेला (Legionella) नाम के बैक्टीरिया से होता है.

यह बीमारी एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैलती.

यह अक्सर तब चर्चा में आती है जब किसी एक जगह पर बहुत सारे लोग एक साथ इसका शिकार होते हैं, जैसे किसी होटल या अस्पताल में.


अगर आप जानना चाहते हैं कि इस बीमारी का नाम कैसे पड़ा और इसका इतिहास क्या है, तो आप हमारा यह ब्लॉग भी पढ़ सकते हैं: लेजिओनेयर्स’ डिजीज का इतिहास


यह बीमारी क्यों और कैसे फैलती है?

लेजिओनेला बैक्टीरिया को पानी से बहुत लगाव है, खासकर उस पानी से जो 20°C से 45°C के बीच गरम रहता है.

यह बैक्टीरिया पानी की महीन बूंदों (mist) के ज़रिए हवा में फैलता है. जब कोई इंसान इस हवा में साँस लेता है, तो यह बैक्टीरिया उसके फेफड़ों में चला जाता है.

यह बैक्टीरिया इन जगहों पर पाया जा सकता है:

बड़ी बिल्डिंग्स के एयर कंडीशनिंग सिस्टम (कूलिंग टावर).

स्पा पूल और हॉट टब.

नलों, शावरों, और गर्म पानी की टंकियों में जो बहुत दिनों से इस्तेमाल न हुई हों.

सजावटी फव्वारे (decorative fountains) या ह्यूमिडिफायर.

फेफड़ों में यह बैक्टीरिया क्या करता है?

जब हम साँस लेते हैं और लेजिओनेला बैक्टीरिया फेफड़ों तक पहुँच जाता है, तो यह वहाँ मौजूद मैक्रोफेज (macrophages) नाम की कोशिकाओं में घुस जाता है.

मैक्रोफेज हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) का हिस्सा होते हैं, जिनका काम बैक्टीरिया और वायरस जैसे बाहरी हमलावरों को ख़त्म करना होता है.

लेकिन यह चालाक बैक्टीरिया मैक्रोफेज के अंदर छिप जाता है और वहाँ अपनी संख्या बढ़ाता रहता है.

Legionnaire disease

जब बैक्टीरिया की संख्या बहुत ज़्यादा हो जाती है, तो ये मैक्रोफेज फट जाते हैं और बैक्टीरिया खून में फैल जाते हैं.

इसके जवाब में, हमारा शरीर इन बैक्टीरिया से लड़ने की कोशिश करता है, जिससे फेफड़ों में सूजन (inflammation) आ जाती है. यह सूजन ही निमोनिया का कारण बनती है और साँस लेने में दिक्कत होने लगती है.

अगर समय पर इलाज न हो, तो यह इन्फेक्शन पूरे शरीर में फैल सकता है.

लेजिओनेयर्स’ डिजीज के लक्षण क्या हैं?

इसके लक्षण आम फ्लू या निमोनिया जैसे ही होते हैं, इसलिए इसे पहचानना मुश्किल हो सकता है. आमतौर पर, बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 2 से 10 दिन बाद लक्षण दिखते हैं.

शुरुआती लक्षण

  • तेज़ बुख़ार और ठंड लगना.
  • सिरदर्द और बदन दर्द.
  • थकान महसूस होना.

कुछ दिनों बाद के लक्षण

  • ख़ाँसी, जिसमें कभी-कभी बलगम या खून भी आ सकता है.
  • साँस लेने में दिक्कत.
  • सीने में दर्द.
  • उल्टी, दस्त और पेट दर्द.
  • कुछ मामलों में दिमाग पर भी असर हो सकता है, जैसे भ्रम (confusion).

अगर आपको ऐसे कोई लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ.

इस बीमारी से सबसे ज़्यादा खतरा किसे है?

वैसे तो कोई भी इसकी चपेट में आ सकता है, पर कुछ लोगों को ज़्यादा खतरा होता है:

  • 50 साल से ज़्यादा उम्र के लोग.
  • जो लोग सिगरेट पीते हैं.
  • जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) कमज़ोर है (जैसे, HIV/AIDS या कैंसर के मरीज़).
  • जिन्हें पहले से ही फेफड़ों की बीमारी है, जैसे COPD.
  • जो लोग अस्पताल या किसी ऐसी जगह पर रहे हैं जहाँ पानी की व्यवस्था सही नहीं है.

    इसका इलाज और बचाव कैसे करें?

    इलाज: इसका इलाज एंटीबायोटिक्स से होता है. अगर सही समय पर इलाज मिल जाए, तो मरीज़ पूरी तरह ठीक हो जाता है. ज़्यादा गंभीर मामलों में अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है.

    बचाव: सबसे अच्छा बचाव है कि हम इस बीमारी को होने ही न दें.

    • अपने घर के हॉट टब, ह्यूमिडिफायर और शावर हेड्स की नियमित सफ़ाई करें.
    • अगर आप लंबे समय से कहीं बाहर हैं और घर लौटते हैं, तो कुछ देर के लिए नलों को चलाकर छोड़ दें ताकि रुका हुआ पानी निकल जाए.
    • बड़ी बिल्डिंग्स, होटल, या अस्पताल में पानी के सिस्टम का सही रखरखाव बहुत ज़रूरी है.

आखिरी बात

लेजिओनेयर्स’ डिजीज एक गंभीर बीमारी है, लेकिन जानकारी और सही सावधानियों से हम इससे बच सकते हैं.

अपने और अपने परिवार की सेहत का ध्यान रखना हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है. जानकारी ही बचाव है!

यह जानकारी आपको कैसी लगी, कमेंट में ज़रूर बताएँ.

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