1940 के दशक के अस्पतालों में एक बहुत आम और दिल दहला देने वाला दृश्य होता था।

नर्सें मरीज़ों की देखभाल करती थीं, उनका दर्द समझती थीं, लेकिन एक ज़रूरी काम के लिए उन्हें सिर्फ इंतज़ार करना पड़ता था। IV सलूशन देना सिर्फ डॉक्टरों का अधिकार था।

नर्सें मरीज़ों को तड़पते देखती थीं, उनके चेहरे पर दर्द और शरीर में कमज़ोरी देखती थीं, और उन्हें पता होता था कि एक छोटा-सा IV कैनुला लगाकर उनकी जान बचाई जा सकती है।

लेकिन, उनके हाथ बंधे थे।

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उन्हें सिर्फ इतना करना होता था कि वे डॉक्टर को बुलाएँ और उनके आने का इंतज़ार करें, जो अक्सर दूसरे ऑपरेशन में व्यस्त होते थे, खासकर रात के समय

हर बीतते मिनट के साथ, नर्सों की आँखों में बेबसी और मन में निराशा बढ़ती जाती थी।

“अगर मेरे पास करने की इजाज़त होती तो…” यह सोच उन्हें अंदर से खाए जा रही थी।

 

मिस एडा प्लुमर (Miss Ada Plumer), जो उस समय मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में मुख्य नर्स थीं, उन्होंने इस पीड़ा को हर दिन महसूस किया।

मिस एडा प्लुमर (Miss Ada Plumer), जो 1940 में मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में मुख्य नर्स थीं, उन्होंने इस समस्या को देखा।

वह जानती थीं कि नर्सों के पास IV लगाने की क्षमता है।

वह जानती थीं कि अगर उन्हें यह काम करने की इजाज़त मिल जाए, तो मरीज़ों की जान बचाई जा सकती है और वह बेबसी खत्म हो सकती है।

 

एक क्रांतिकारी प्रस्ताव

मिस प्लुमर ने इस सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ने का फैसला किया।

उन्होंने एक बहुत ही क्रांतिकारी प्रस्ताव रखा: नर्सों को IV सलूशन देने के लिए प्रशिक्षित (trained) किया जाना चाहिए।

यह उस समय के चिकित्सा जगत के लिए एक बहुत ही विवादास्पद (controversial) विचार था। कई डॉक्टरों ने इसका विरोध किया, क्योंकि यह सदियों से चली आ रही परंपरा के खिलाफ था।

वे मानते थे कि यह काम सिर्फ डॉक्टर ही कर सकते हैं।

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लेकिन मिस प्लुमर अपने विचार पर अडिग रहीं। उन्होंने डॉक्टर हेनरी बीचर के साथ मिलकर एक ऐसा कठोर और विस्तृत ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाया, जहाँ नर्सों को IV लगाना और उनकी देखभाल करना सिखाया जाता था।

यह ट्रेनिंग इतनी सख्त थी कि नर्सों को इस प्रक्रिया में पूरी तरह माहिर होना पड़ा।

इतिहास का एक नया अध्याय

अस्पताल ने आखिरकार उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और ट्रेनिंग के बाद, नर्सों को IV सलूशन देने की इजाज़त दी।

यह एक ऐतिहासिक क्षण था। उस दिन, नर्सों की बेबसी आशा में बदल गई।

इस पायलट प्रोग्राम से यह साबित हुआ कि नर्सें इस काम को सुरक्षित और प्रभावी तरीके से कर सकती हैं, जिससे मरीज़ों की देखभाल में सुधार हुआ और डॉक्टरों का समय भी बचा।

धीरे-धीरे, मिस प्लुमर का यह साहस पूरी दुनिया के अस्पतालों में फैल गया। 1970 के दशक के आखिर तक, कैनुला लगाना नर्सिंग का एक अहम और अनिवार्य हिस्सा बन गया।

मिस एडा प्लुमर की कहानी सिर्फ एक नर्स की नहीं है। यह उन सभी नर्सों की कहानी है जिन्होंने मरीज़ों की भलाई के लिए परंपराओं को तोड़ा और अपने पेशे को एक नई पहचान दी।

उनकी दूरदर्शिता और साहस ने यह साबित कर दिया कि सही समय पर लिया गया एक छोटा सा कदम, पूरे चिकित्सा जगत को बदल सकता है।

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