‘बुरी आत्माओं’ का साया या postpartum psychosis
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से आई एक खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
एक 23 साल की नई माँ ने अपने सिर्फ़ 15 दिन के मासूम बच्चे को फ्रिज में रख दिया और सोने चली गई।
शुक्र है, बच्चे की दादी ने उसकी रोने की आवाज़ सुनी और उसे बचा लिया। बच्चा अब सुरक्षित है।
जब परिवार ने उस माँ से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया, तो उसका जवाब था – “वह सो नहीं रहा था, इसलिए मैंने उसे फ्रिज में रख दिया।”
यह बात सुनकर परिवार और पड़ोसियों के मन में पहला विचार क्या आया?

‘बुरी आत्माओं’ का साया नहीं, दिमाग की एक दर्दनाक बीमारी है पोस्टपार्टम साइकोसिस। इस माँ की खामोश चीख को सुनिए।
‘बुरी आत्माओं’ का साया, जादू-टोना, किसी अनहोनी शक्ति का प्रभाव।
उन्होंने झाड़-फूँक और तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लिया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
अंततः, एक रिश्तेदार की सलाह पर, जब उसे एक मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया,
तो सच्चाई सामने आई: उसे पोस्टपार्टम साइकोसिस Postpartum Psychosis था।
यह घटना सिर्फ़ एक खबर नहीं है।
यह भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति हमारी सामूहिक अज्ञानता, अंधविश्वास और संवेदनहीनता का एक भयावह आईना है।
यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कितनी और माएँ, कितने और परिवार इस अदृश्य बीमारी से जूझ रहे होंगे, जिसे हम ‘जादू-टोना’ या ‘पागलपन’ समझकर अनदेखा कर देते हैं।
यह ब्लॉग आपको इस दिल दहला देने वाली घटना के पीछे की सच्चाई को समझने में मदद करेगा।
यह बताएगा कि पोस्टपार्टम साइकोसिस क्या है, यह क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं, और सबसे महत्वपूर्ण – हमें कब संदेह करना चाहिए और क्या कदम उठाने चाहिए?
यह कोई जादू नहीं है, यह एक गंभीर बीमारी है, और इसका इलाज संभव है।
आइए, इस वर्जित विषय पर बात करें, ताकि भविष्य में कोई और माँ ऐसी त्रासदी का शिकार न हो और कोई बच्चा गलतफहमी का बोझ न उठाए।
मुरादाबाद की कहानी: जब परिवार ने ‘बुरी आत्माओं’ पर विश्वास किया
(The Moradabad Story: When the Family Believed in ‘Evil Forces’)

जब ‘बुरी आत्माओं’ का साया समझा गया, तब असली बीमारी का इलाज खो रहा था।
यह एक ऐसी घटना है जो दिल को चीर देती है।
एक नई माँ, जिसने अभी-अभी एक बच्चे को जन्म दिया था, अपनी खुशी और उम्मीदों की जगह एक गहरे अंधेरे में डूब चुकी थी।
उसका बच्चा, जो दुनिया में आए सिर्फ़ 15 दिन हुए थे, उसकी अपनी माँ के हाथों ही मौत के मुँह में धकेला जा रहा था।
जब दादी ने बच्चे को फ्रिज में पाया और उसे बचाया, तो परिवार के लिए यह समझना नामुमकिन था।
एक माँ ऐसा कैसे कर सकती है? हमारे समाज में, माँ का प्यार निस्वार्थ और अटूट माना जाता है।
ऐसे में, यह व्यवहार किसी ‘असामान्य’ या ‘अलौकिक’ शक्ति के प्रभाव जैसा ही लगा।
परिवार ने जो किया, वह कई भारतीय परिवारों में आम है – खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में।
जब कोई व्यक्ति असामान्य व्यवहार करता है, तो पहला विचार चिकित्सा सहायता का नहीं होता, बल्कि ‘जादू-टोना’, ‘बुरी नज़र’ या ‘भूत-प्रेत’ का होता है।
वे ओझा, तांत्रिक या बाबाओं के पास जाते हैं, पूजा-पाठ और टोटके करते हैं।
यह एक खतरनाक मोड़ है।
जब तक परिवार अंधविश्वास में उलझा रहा, उस माँ की वास्तविक बीमारी बढ़ती रही।
उसका दिमाग धीरे-धीरे और ज़्यादा भ्रमित होता गया। यह समय अमूल्य था, जिसे सही इलाज में लगाया जा सकता था, लेकिन यह खो गया।
सौभाग्य से, एक रिश्तेदार ने समझदारी दिखाई और उन्हें मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह दी।
डॉ. कार्तिकेय गुप्ता ने तुरंत निदान किया: पोस्टपार्टम साइकोसिस।
यह वह पल था जब ‘जादू-टोना’ की जगह विज्ञान ने ली, और उस माँ को आखिरकार वह मदद मिलनी शुरू हुई जिसकी उसे सख्त ज़रूरत थी।
यह घटना हमें एक कड़वा सबक सिखाती है: मानसिक स्वास्थ्य के प्रति हमारी अज्ञानता और अंधविश्वास कितनी भयानक कीमत वसूल सकते हैं।
पोस्टपार्टम साइकोसिस: एक गंभीर बीमारी, कोई जादू नहीं
(Postpartum Psychosis: A Serious Illness, Not Magic)

तीनों स्थितियाँ एक जैसी नहीं हैं। बेबी ब्लूज़ सामान्य है, लेकिन डिप्रेशन और साइकोसिस के लिए मदद चाहिए।
‘पोस्टपार्टम साइकोसिस’ सुनने में एक जटिल मेडिकल शब्द लगता है। लेकिन इसे समझना बहुत ज़रूरी है।
यह क्या है?
पोस्टपार्टम साइकोसिस एक गंभीर मानसिक बीमारी है जो प्रसव के तुरंत बाद (आमतौर पर पहले 2-4 हफ्तों में, लेकिन कभी-कभी 3 महीने तक) एक महिला को प्रभावित कर सकती है। (NHS UK)
इसे मेडिकल इमरजेंसी (Medical Emergency) माना जाना चाहिए, जिसका अर्थ है कि इसे तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है, जैसे दिल के दौरे या गंभीर चोट के लिए होती है।
यह ‘बेबी ब्लूज़’ या पोस्टपार्टम डिप्रेशन से अलग कैसे है?
बेबी ब्लूज़ (Baby Blues)
नई माताओं में हल्के मूड स्विंग्स (mood swings), उदासी और चिड़चिड़ापन होना सामान्य है।
यह आमतौर पर प्रसव के कुछ दिनों बाद शुरू होता है और कुछ दिनों तक रहता है,
फिर अपने आप ठीक हो जाता है। यह कोई मानसिक बीमारी नहीं है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression – PPD)
यह बेबी ब्लूज़ से ज़्यादा गंभीर होता है और कई हफ्तों या महीनों तक चल सकता है।
इसमें उदासी, ऊर्जा की कमी, भूख न लगना, सोने में परेशानी और बच्चे से जुड़ने में कठिनाई शामिल है।
इसमें भी पेशेवर मदद की आवश्यकता होती है।
पोस्टपार्टम साइकोसिस (Postpartum Psychosis – PPP)
यह सबसे गंभीर स्थिति है। इसमें महिला वास्तविकता से पूरी तरह कट जाती है।
उसके सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने का तरीका पूरी तरह से बदल जाता है।
यह एक आपातकालीन स्थिति है जो माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है।
इसके लक्षण क्या हैं? (What are its symptoms?)
पोस्टपार्टम साइकोसिस के लक्षण बहुत तेज़ी से बिगड़ सकते हैं। इनमें से कुछ मुख्य लक्षण ये हैं:
मतिभ्रम (Hallucinations)
महिला को ऐसी चीजें दिखाई या सुनाई दे सकती हैं जो असल में नहीं हैं।
जैसे, उसे लग सकता है कि कोई उससे बात कर रहा है, या कोई उसे छू रहा है।
मुरादाबाद की घटना में, माँ को लगा होगा कि बच्चा ‘सो नहीं रहा’ है, और फ्रिज में रखना एक ‘सही’ उपाय था, जो उसके भ्रम का हिस्सा था।
भ्रम (Delusions)
महिला को कुछ ऐसी बातें सच लगने लगती हैं जो तर्कहीन और असत्य होती हैं। जैसे:
उसे लग सकता है कि उसका बच्चा ‘बुरा’ है, या शैतानी है।
उसे लग सकता है कि कोई उसे या बच्चे को नुकसान पहुँचाना चाहता है।
उसे लग सकता है कि वह खुद एक विशेष मिशन पर है।
अत्यधिक ऊर्जा या सुस्ती (Extreme Energy or Sluggishness)
महिला या तो बहुत ज़्यादा उत्साहित, बेचैन और ऊर्जावान हो सकती है (जैसे बिना सोए कई घंटे काम करना),
या फिर बहुत ज़्यादा सुस्त, निस्तेज और प्रतिक्रियाहीन हो सकती है।
मूड में भारी बदलाव (Severe Mood Swings)
बहुत तेज़ी से अत्यधिक खुशी से लेकर गंभीर उदासी या क्रोध में बदलना।
भ्रमित होना और बेचैनी (Confusion and Disorientation)
महिला समय, स्थान या लोगों को पहचानने में भ्रमित हो सकती है। वह बहुत बेचैन और अशांत दिख सकती है।
सोने में गंभीर समस्या (Severe Sleep Disturbances)
महिला बहुत कम सोती है या बिल्कुल नहीं सोती, लेकिन थकी हुई नहीं लगती।
बच्चे के प्रति अजीब व्यवहार (Strange Behavior Towards the Baby)
बच्चे से पूरी तरह से अलग रहना, या बच्चे को नुकसान पहुँचाने वाले विचार या कार्य करना (जैसे मुरादाबाद की घटना में हुआ)।
आत्म-नुकसान के विचार (Thoughts of Self-Harm)
माँ को खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार आ सकते हैं।
ये लक्षण इतने गंभीर होते हैं कि महिला अपनी देखभाल या बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ हो जाती है।
यह क्यों होता है? (Why does it happen?)
पोस्टपार्टम साइकोसिस का कोई एक कारण नहीं है। यह अक्सर कई कारकों का संयोजन होता है:
हार्मोनल परिवर्तन (Hormonal Changes)
प्रसव के बाद शरीर में हार्मोन (विशेष रूप से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन) का स्तर तेज़ी से गिरता है। यह अचानक गिरावट मस्तिष्क की रसायन शास्त्र को प्रभावित कर सकती है।
नींद की कमी (Sleep Deprivation)
नई माताओं को अक्सर बहुत कम नींद मिलती है, और नींद की अत्यधिक कमी मानसिक स्वास्थ्य पर भारी असर डाल सकती है।
आनुवंशिक प्रवृत्ति (Genetic Predisposition)
कुछ महिलाओं में मानसिक बीमारियों (जैसे बाइपोलर डिसऑर्डर या सिज़ोफ्रेनिया) का पारिवारिक इतिहास होता है, जिससे उन्हें PPP होने का खतरा बढ़ जाता है।
पहले की मानसिक बीमारी (Previous Mental Illness)
जिन महिलाओं को पहले बाइपोलर डिसऑर्डर या साइकोसिस का एपिसोड हुआ हो, उन्हें PPP होने का अधिक खतरा होता है।
गर्भावस्था या प्रसव की जटिलताएँ (Pregnancy or Delivery Complications)
तनावपूर्ण प्रसव या स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ भी जोखिम बढ़ा सकती हैं।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह किसी माँ की गलती नहीं है।
यह एक बीमारी है जो किसी को भी हो सकती है।
जब महिलाओं को प्रसव के बाद उपेक्षा मिलती है और पर्याप्त भावनात्मक समर्थन नहीं मिलता है, तो पोस्टपार्टम साइकोसिस और डिप्रेशन हो सकता है।
कब संदेह करें और क्या करें? आपकी जागरूकता बचा सकती है जान
(When to Suspect and What to Do? Your Awareness Can Save Lives)

ये ‘रेड फ्लैग्स’ हैं! अगर आप नई माँ में ऐसे बदलाव देखते हैं, तो तुरंत मदद लें।
मुरादाबाद की घटना हमें सिखाती है कि हममें से हर किसी को मानसिक स्वास्थ्य के इन गंभीर संकेतों को पहचानना आना चाहिए।
परिवार के सदस्यों, दोस्तों और पड़ोसियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कब संदेह करें?
(When to Suspect? – ‘Red Flags’)
अगर आप प्रसव के बाद किसी नई माँ में (विशेषकर पहले 2-4 हफ्तों में) निम्नलिखित में से कोई भी गंभीर बदलाव देखते हैं, तो तुरंत सतर्क हो जाएँ:
व्यवहार में अचानक और गंभीर बदलाव
पहले जैसी नहीं दिखना, अजीब तरीके से बात करना या काम करना।
अत्यधिक बेचैनी, उत्तेजना, या लगातार बेचैन रहना।
या फिर बिल्कुल सुस्त, निस्तेज, किसी चीज़ में रुचि न लेना।
सोने में अत्यधिक समस्या
कई रातों तक बिल्कुल न सोना, लेकिन फिर भी थकी हुई न लगना।
या फिर पूरे दिन सोना, लेकिन फिर भी नींद पूरी न होना।
बातचीत में भ्रम या अजीब बातें
ऐसी बातें कहना जो सच नहीं हैं, या जिनमें कोई तर्क नहीं है।
बार-बार एक ही बात दोहराना, या भ्रमित दिखना।
उसे लग सकता है कि कोई उसे या बच्चे को नुकसान पहुँचाना चाहता है।
उसे सुनाई दे रहा हो या दिखाई दे रहा हो जो दूसरों को नहीं है।
मूड में तेज़ी से बदलाव
बहुत जल्दी-जल्दी अत्यधिक खुशी से बहुत ज़्यादा उदासी या चिड़चिड़ापन में बदलना।
अचानक रोना या गुस्सा करना।
बच्चे के प्रति अजीब व्यवहार
बच्चे से पूरी तरह से कटा हुआ महसूस करना।
बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ होना।
बच्चे को नुकसान पहुँचाने वाले विचार या डर होना।
बच्चे को नुकसान पहुँचाने वाले काम करना (यह सबसे बड़ा चेतावनी संकेत है)।
आत्म-नुकसान के विचार
अगर माँ खुद को नुकसान पहुँचाने की बात करती है या ऐसा करने की कोशिश करती है।
यह याद रखें
पोस्टपार्टम साइकोसिस कोई ‘पागलपन’ नहीं है, न ही यह ‘जादू-टोना’ या ‘बुरी आत्माओं’ का असर है।
यह एक गंभीर मेडिकल स्थिति है जिसके लिए तुरंत पेशेवर मदद की आवश्यकता होती है।
क्या करें? (What to Do? – Immediate Action)
अगर आपको लगता है कि कोई नई माँ पोस्टपार्टम साइकोसिस से पीड़ित हो सकती है, तो एक पल की भी देरी न करें!
यह एक आपातकालीन स्थिति है: इसे दिल के दौरे या गंभीर चोट जितनी ही गंभीरता से लें।
तुरंत चिकित्सा सहायता लें
उसे तुरंत एक मनोचिकित्सक (psychiatrist) के पास ले जाएँ।
अगर संभव न हो, तो उसे नजदीकी अस्पताल के आपातकालीन विभाग (emergency department) में ले जाएँ।
किसी विश्वसनीय डॉक्टर या स्वास्थ्य कार्यकर्ता से संपर्क करें और अपनी चिंताओं के बारे में बताएं।
सुरक्षा सुनिश्चित करें
माँ और बच्चे दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। माँ को कभी अकेला न छोड़ें।
अगर माँ बच्चे को नुकसान पहुँचाने की बात करती है या ऐसा करने की कोशिश करती है, तो बच्चे को उससे दूर रखें और तुरंत पेशेवर मदद लें।
सहानुभूति रखें
उस माँ पर गुस्सा न करें या उसे ‘पागल’ न कहें। वह बीमार है और उसे आपकी समझ और समर्थन की आवश्यकता है।
उसे आश्वस्त करें कि उसका इलाज संभव है और वह बेहतर हो जाएगी।
अंधविश्वास से बचें
झाड़-फूँक, तांत्रिक या ओझा के पास जाकर समय बर्बाद न करें। यह सिर्फ़ स्थिति को और बदतर बनाएगा और इलाज में देरी करेगा।
मानसिक स्वास्थ्य पर बात: क्यों यह ‘शर्म’ का नहीं, ‘समझ’ का विषय है
(Talking About Mental Health: Why It’s a Matter of ‘Understanding,’ Not ‘Shame’)

चुप्पी तोड़कर, समझ और समर्थन से ही हम मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
भारत में, मानसिक स्वास्थ्य को अक्सर एक कलंक (stigma) माना जाता है।
लोग मानसिक बीमारियों के बारे में बात करने से डरते हैं, उन्हें ‘कमजोरी’ या ‘पागलपन’ समझते हैं।
लेकिन मुरादाबाद की घटना हमें याद दिलाती है कि यह चुप्पी कितनी खतरनाक हो सकती है।
जागरूकता की कमी को दूर करना
(Bridging the Awareness Gap)
हमें अपने समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता फैलानी होगी।
लोगों को शिक्षित करना होगा कि मानसिक बीमारियाँ किसी भी अन्य शारीरिक बीमारी की तरह ही होती हैं – वे वास्तविक होती हैं, उनका इलाज संभव होता है, और वे किसी की गलती नहीं होती हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, आशा वर्कर्स और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रसव के बाद महिलाओं में मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
अंधविश्वास से लड़ना (Fighting Superstition)
हमें अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी जो मानसिक बीमारियों को ‘बुरी आत्माओं’ या ‘जादू-टोना’ से जोड़ते हैं।
धार्मिक नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों को इस संदेश को फैलाने में मदद करनी चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य एक चिकित्सीय मुद्दा है।
समर्थन प्रणाली को मजबूत करना (Strengthening Support Systems)
परिवारों, दोस्तों और पड़ोसियों को नई माताओं को भावनात्मक और व्यावहारिक समर्थन प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
प्रसव के बाद नियमित जांच (postnatal check-ups) में मानसिक स्वास्थ्य स्क्रीनिंग को शामिल करना चाहिए।
मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में।
खुद से दयालु होना (Being Kind to Ourselves)
अगर आप खुद एक नई माँ हैं और आप अच्छा महसूस नहीं कर रही हैं, तो शर्माएँ नहीं। मदद मांगने में कोई बुराई नहीं है।
अपने डॉक्टर से बात करें, किसी विश्वसनीय दोस्त या परिवार के सदस्य से अपनी भावनाओं को साझा करें।
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आम सवालों के जवाब
(Answers to Common Questions from Google’s ‘People Also Ask’)
आइए, पोस्टपार्टम साइकोसिस के बारे में कुछ आम सवालों के जवाब दें जो अक्सर लोग पूछते हैं
Q1: पोस्टपार्टम साइकोसिस कितने समय तक रहता है?
A1: उचित उपचार के साथ, पोस्टपार्टम साइकोसिस के लक्षण आमतौर पर हफ्तों या महीनों में सुधर जाते हैं।
हालांकि, पूरी तरह से ठीक होने में अधिक समय लग सकता है, और कुछ महिलाओं को दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता हो सकती है।
यह महत्वपूर्ण है कि उपचार को बीच में न रोकें।
Q2: क्या पोस्टपार्टम साइकोसिस का इलाज संभव है?
A2: हाँ, बिल्कुल! पोस्टपार्टम साइकोसिस एक बहुत ही इलाज योग्य स्थिति है।
उपचार में आमतौर पर दवाएँ (जैसे एंटीसाइकोटिक्स, मूड स्टेबलाइजर), टॉक थेरेपी (जैसे संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी – CBT), और भावनात्मक समर्थन शामिल होता है।
कुछ गंभीर मामलों में, अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है।
Q3: पोस्टपार्टम साइकोसिस का जोखिम किसे होता है?
A3: कोई भी महिला इससे प्रभावित हो सकती है, लेकिन कुछ कारकों से जोखिम बढ़ जाता है:
बाइपोलर डिसऑर्डर या सिज़ोफ्रेनिया का व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास।
पहले के प्रसव के बाद साइकोसिस का एपिसोड।
गंभीर नींद की कमी।
गर्भावस्था या प्रसव के दौरान अत्यधिक तनाव।
Q4: क्या मैं फिर से गर्भवती हो सकती हूँ अगर मुझे पहले पोस्टपार्टम साइकोसिस हुआ हो?
A4: हाँ, आप फिर से गर्भवती हो सकती हैं।
हालांकि, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपनी अगली गर्भावस्था की योजना बनाने से पहले अपने डॉक्टर या मनोचिकित्सक से बात करें।
वे जोखिमों का मूल्यांकन करेंगे, और आपको एक निगरानी योजना और संभावित निवारक उपचारों के बारे में सलाह देंगे।
Q5: क्या पुरुष भी पोस्टपार्टम साइकोसिस से पीड़ित हो सकते हैं?
A5: नहीं, पोस्टपार्टम साइकोसिस विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है जो बच्चे को जन्म देती हैं, क्योंकि यह हार्मोनल परिवर्तनों से जुड़ा है।
हालांकि, पुरुषों को भी प्रसव के बाद अवसाद (postpartum depression) या चिंता का अनुभव हो सकता है,
जिसे ‘पैटर्नल पोस्टपार्टम डिप्रेशन’ कहते हैं, लेकिन यह साइकोसिस नहीं होता।
Q6: मैं किसी नई माँ की मदद कैसे करूँ जो संघर्ष कर रही हो?
A6: सुनें: उसकी बातों को ध्यान से सुनें और उसे बताएं कि आप उसके साथ हैं।
समर्थन दें: उसे घर के कामों, बच्चे की देखभाल या भोजन बनाने में मदद करें।
प्रेरित करें: उसे डॉक्टर से मिलने या पेशेवर मदद लेने के लिए प्रेरित करें।
जागरूक रहें: उसके व्यवहार में किसी भी असामान्य बदलाव पर नज़र रखें और आवश्यकता पड़ने पर तुरंत मदद लें।
निष्कर्ष: चुप्पी तोड़ो, जान बचाओ
(Conclusion: Break the Silence, Save Lives)

चुप्पी तोड़ें, जानकारी फैलाएँ, समर्थन दें। हमारी जागरूकता ही कई जिंदगियों को बचा सकती है।
मुरादाबाद की घटना हमें एक भयानक चेतावनी देती है, लेकिन यह हमें एक अवसर भी देती है।
एक अवसर कि हम मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी सामूहिक सोच को बदलें।
एक अवसर कि हम ‘जादू-टोना’ और ‘बुरी आत्माओं’ जैसे अंधविश्वासों को छोड़कर विज्ञान और सहानुभूति को अपनाएं।
पोस्टपार्टम साइकोसिस एक गंभीर बीमारी है, लेकिन इसका इलाज संभव है।
सही समय पर पहचान और उचित चिकित्सा सहायता के साथ, माएँ पूरी तरह से ठीक हो सकती हैं और अपने बच्चों के साथ एक खुशहाल जीवन जी सकती हैं।
यह ब्लॉग केवल जानकारी नहीं है, यह एक अपील है।
एक अपील कि हम नई माताओं और उनके परिवारों के प्रति अधिक जागरूक, अधिक दयालु और अधिक जिम्मेदार बनें।
यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम इस चुप्पी को तोड़ें और जान बचाने के लिए आगे आएं।
याद रखें, मानसिक स्वास्थ्य कोई कमजोरी नहीं है।
यह मानव अनुभव का एक हिस्सा है। और मदद मांगना बहादुरी का काम है।
अगर आप या आपके जानने वाला कोई भी व्यक्ति संघर्ष कर रहा है, तो कृपया मदद मांगने में संकोच न करें। एक कॉल, एक बातचीत, एक डॉक्टर की सलाह – एक जान बचा सकती है।
अस्वीकरण
यह ब्लॉग मुरादाबाद की घटना और पोस्टपार्टम साइकोसिस पर सामान्य वैज्ञानिक जानकारी पर आधारित है।
इसमें दी गई जानकारी केवल जागरूकता के उद्देश्य से है और इसे चिकित्सा सलाह या निदान के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।
पोस्टपार्टम साइकोसिस या किसी भी अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंता के लिए, कृपया हमेशा एक योग्य मनोचिकित्सक या चिकित्सा पेशेवर से सलाह लें।
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