हाँ, कुछ लोग हैं जो रेबीज़ से बच गए हैं, लेकिन यह बहुत ही दुर्लभ (rare) मामला है।

यह जानना बेहद ज़रूरी है ताकि लोग ग़लत जानकारी से बच सकें और इलाज में देरी न करें।

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रेबीज़ से बचे हुए लोग

रेबीज़ से बचने वाले लोगों की संख्या दुनिया भर में उँगलियों पर गिनी जा सकती है।

जब तक रेबीज़ के लक्षण दिखते हैं, तब तक इसका इलाज लगभग 100% नामुमकिन हो जाता है और यह जानलेवा साबित होता है। इसलिए, इन मामलों को “चमत्कार” से कम नहीं माना जाता।

इनमें सबसे मशहूर मामला जेना गीसे (Jeanna Giese) नाम की एक अमेरिकी लड़की का है, जो 2004 में चमगादड़ के काटने के बाद भी बच गई थी।

कैसे बच पाए?

साल 2004 में, अमेरिका के विस्कॉन्सिन शहर में रहने वाली 15 साल की जेना गीसे को एक चमगादड़ ने काट लिया था। उस समय उन्हें लगा कि यह एक मामूली खरोंच है और उन्होंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

कई हफ़्तों बाद, जब उन्हें रेबीज़ के लक्षण (जैसे बुखार, सिरदर्द, और मांसपेशियों में खिंचाव) दिखने लगे, तब तक वायरस उनके दिमाग में पहुँच चुका था।

डॉक्टरों ने जब जाँच की, तो पता चला कि उन्हें रेबीज़ है और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।

लेकिन, उनके डॉक्टर, डॉ. रॉडनी विलोबी ने एक बहुत ही जोखिम भरा और नया तरीका आजमाया, जिसे बाद में मिलवॉकी प्रोटोकॉल (Milwaukee Protocol) का नाम दिया गया।

इस इलाज में मरीज़ को जानबूझकर कोमा (medically induced coma) में डाल दिया जाता है।

इस इलाज के पीछे का सिद्धांत क्या था?

  • डॉक्टरों ने सोचा कि कोमा में डालकर दिमाग की गतिविधि को कम कर दिया जाए।
  • इस दौरान, मरीज़ को कुछ दवाएँ दी गईं ताकि उसका इम्यून सिस्टम रेबीज़ के वायरस से लड़ने के लिए पर्याप्त एंटीबॉडीज़ बना सके।
  • जब मरीज़ को कोमा से बाहर निकाला गया, तो उसका शरीर वायरस से लड़ने के लिए तैयार था।

ये जानकारी क्यों ज़रूरी है?

लोग अक्सर यह सोचकर ग़लती कर बैठते हैं कि जब एक व्यक्ति बच गया, तो दूसरा भी बच जाएगा और इसलिए वे तुरंत इलाज नहीं करवाते।

लेकिन यहाँ कुछ बहुत ही ज़रूरी बातें हैं जो आपको जाननी चाहिए:

  1. बहुत कम सफलता दर: मिलवॉकी प्रोटोकॉल का इस्तेमाल कई और लोगों पर भी किया गया, लेकिन उनमें से ज़्यादातर लोग बच नहीं पाए। इसकी सफलता दर बहुत ही कम है।
  2. काफी महंगा और जोखिम भरा: यह इलाज बहुत महंगा और बहुत जोखिम भरा होता है। यह सिर्फ दुनिया के कुछ खास अस्पतालों में ही उपलब्ध है।
  3. बेहतर इलाज की गारंटी नहीं: डॉक्टर भी इस बात को नहीं मानते कि यह कोई पक्का इलाज है। उनका मानना है कि जेना गीसे शायद किसी खास कारण से बच गई होगी, जैसे कि वायरस की कमज़ोर किस्म या उसके शरीर की विशेष रोग प्रतिरोधक क्षमता।

इसलिए, सबसे ज़रूरी बात यह है कि रेबीज़ से बचने का सबसे कामयाब और 100% भरोसेमंद तरीका केवल और केवल एक ही है:

जानवर के काटने के तुरंत बाद घाव को साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं और बिना देर किए डॉक्टर के पास जाएँ।

समय पर वैक्सीन (vaccine) और रेबीज़ इम्यूनोग्लोबुलिन (RIG) लेना ही रेबीज़ से बचने का एकमात्र सही रास्ता है। लक्षण दिखने के बाद, देर हो चुकी होती है।

और जानकारी के लिए, आप इन वेबसाइट्स पर जा सकते हैं:

(डिस्क्लेमर: यह जानकारी सिर्फ आम जानकारी के लिए है। किसी भी मेडिकल सलाह के लिए हमेशा डॉक्टर से संपर्क करें।)