वह समय, जब जीवन का रहस्य छिपा था

यह 20वीं सदी के 1950 के दशक की बात है।

वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे थे कि जीवन का ब्लूप्रिंट (blueprint) क्या है?

शरीर की कोशिकाएँ (cells) कैसे बनती हैं?

ये सब कैसे काम करता है? इसका जवाब डीएनए (DNA) नाम के एक अणु (molecule) में छिपा था।

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सभी जानते थे कि डीएनए ज़रूरी है, लेकिन उसकी संरचना कैसी दिखती है, यह कोई नहीं जानता था।

डीएनए की संरचना को समझ लेना विज्ञान की सबसे बड़ी पहेली को सुलझाने जैसा था।

इस पहेली को सुलझाने की दौड़ में कई वैज्ञानिक थे, और उनमें से एक थी एक तेज़ दिमाग वाली,

बेमिसाल वैज्ञानिक, डॉ. रोज़ालिंड फ्रैंकलिन (Dr. Rosalind Franklin)

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एक महिला वैज्ञानिक का अनमोल योगदान

रोज़ालिंड फ्रैंकलिन एक बहुत ही होशियार और मेहनती वैज्ञानिक थीं।

वह एक ऐसे क्षेत्र में काम कर रही थीं जहाँ पुरुष वैज्ञानिकों का ही दबदबा था।

वह किंग्स कॉलेज लंदन में एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी (X-ray crystallography) में विशेषज्ञ थीं।

उनका काम था एक्स-रे का इस्तेमाल करके डीएनए जैसे जटिल अणुओं की तस्वीरें लेना।

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यह बहुत ही मुश्किल और बारीकी का काम था, जिसमें उन्होंने महारत हासिल कर ली थी।

उनकी तस्वीरें बाकी वैज्ञानिकों द्वारा ली गई तस्वीरों से कहीं ज़्यादा साफ और बेहतर होती थीं।

वह अपने काम को जुनून के साथ करती थीं और उनका एक ही लक्ष्य था: डीएनए के रहस्य को सुलझाना।

 

वो ऐतिहासिक तस्वीर: ‘फोटो 51’

कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद, फ्रैंकलिन और उनकी टीम ने डीएनए की एक ऐसी एक्स-रे तस्वीर ली जो इतिहास में दर्ज हो गई।

इसे ‘फोटो 51’ (Photo 51) के नाम से जाना जाता है।

PHOTO 51

Image Credit :https://commons.wikimedia.org/w/index.php?search=PHOTO+51&title=Special%3AMediaSearch&type=image

यह तस्वीर किसी भी अन्य तस्वीर से कहीं ज़्यादा साफ थी और इसमें डीएनए की संरचना का स्पष्ट सबूत था।

यह पहली बार था जब किसी वैज्ञानिक ने डीएनए के ‘डबल हेलिक्स’ (double helix) यानी दोहरी कुंडली संरचना का इतना ठोस प्रमाण देखा था।

‘फोटो 51’ डीएनए की पहेली को सुलझाने की सबसे अहम चाबी थी।

 

जब श्रेय किसी और को मिला

दुर्भाग्यवश, फ्रैंकलिन की गैरमौजूदगी में उनके सहकर्मी मॉरिस विल्किंस (Maurice Wilkins) ने यह तस्वीर उनकी अनुमति के बिना जेम्स वॉटसन (James Watson) और फ्रांसिस क्रिक (Francis Crick) को दिखा दी।

वॉटसन और क्रिक भी डीएनए की संरचना पर काम कर रहे थे, लेकिन उनके पास स्पष्ट प्रमाण नहीं था।

‘फोटो 51’ ने उन्हें वह आख़िरी सुराग दिया जिसकी उन्हें तलाश थी।

इस एक तस्वीर की मदद से उन्होंने डीएनए का सटीक मॉडल बना लिया और 1953 में अपनी खोज को प्रकाशित कर दिया।

उस लेख में उन्होंने फ्रैंकलिन के योगदान का बहुत कम ज़िक्र किया था।

 

एक गुमनाम नायिका का सम्मान

1958 में, रोज़ालिंड फ्रैंकलिन की कैंसर से मृत्यु हो गई।

चार साल बाद, 1962 में, जेम्स वॉटसन, फ्रांसिस क्रिक और मॉरिस विल्किंस को डीएनए की संरचना की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया।

उस समय, पुरस्कार सिर्फ जीवित व्यक्तियों को दिया जाता था, और दुनिया को फ्रैंकलिन के असली योगदान के बारे में ज़्यादा पता नहीं था।

कई सालों तक रोज़ालिंड फ्रैंकलिन का नाम गुमनामी में रहा।

लेकिन बाद में, जब इतिहास के पन्नों को पलटा गया, तो उनके काम और ‘फोटो 51’ की असली अहमियत सामने आई।

आज उन्हें सही मायनों में डीएनए की संरचना की खोज में एक प्रमुख वैज्ञानिक के रूप में सम्मानित किया जाता है।

उनकी कहानी हमें सिखाती है कि विज्ञान की दुनिया में महान योगदान देने वाली महिलाएँ अक्सर इतिहास में खो जाती हैं, लेकिन उनकी खोज हमेशा ज़िंदा रहती है।

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