स्ट्रोक, एक ऐसा मेडिकल इमरजेंसी है जो किसी भी इंसान की ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल सकता है।
स्ट्रोक के बाद, मरीज़ों को अक्सर हाथ-पैर हिलाने में दिक्कत होती है। शुरुआती दिनों में तो थेरेपी से कुछ सुधार आता है, लेकिन एक समय के बाद अक्सर रिकवरी रुक सी जाती है।
इसे वैज्ञानिक भाषा में “रिकवरी का पठार” (recovery plateau) कहते हैं। बहुत से लोग यह मान लेते हैं कि अब वे पहले की तरह ठीक नहीं हो पाएँगे।
लेकिन, विज्ञान की दुनिया में अब एक नई उम्मीद जगी है: वैगल नर्व स्टिमुलेशन (VNS)।
यह एक ऐसी थेरेपी है जो फिजियोथेरेपी के साथ मिलकर काम करती है और दिमाग को फिर से जगाने में मदद करती है, खासकर उन लोगों के लिए जिनकी स्ट्रोक के बाद हाथ की क्षमता कम हो गई है।
आइए, इस क्रांतिकारी थेरेपी को सरल भाषा में समझते हैं।
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क्या है वैगल नर्व स्टिमुलेशन (VNS)?
वैगल नर्व स्टिमुलेशन (VNS) एक छोटी सी प्रक्रिया है जिसमें एक छोटा डिवाइस, जो एक दिल के पेसमेकर जैसा दिखता है, शरीर के अंदर लगाया जाता है।
यह डिवाइस वैगस नर्व नाम की एक खास नस को हल्की बिजली देता है। यह नस दिमाग को शरीर के बाकी हिस्सों से जोड़ती है।
यह डिवाइस गले के पास एक छोटी सी सर्जरी से लगाया जाता है।
ऑपरेशन में सिर्फ 60-90 मिनट लगते हैं और मरीज़ को उसी दिन घर भेज दिया जाता है। इस थेरेपी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह फिजियोथेरेपी के साथ मिलकर काम करती है।
थेरेपी सेशन के दौरान, एक छोटा सा रिमोट जैसा डिवाइस इस्तेमाल करके नर्स या फिजियोथेरेपिस्ट इस डिवाइस को एक्टिवेट करते हैं।
जब भी मरीज़ अपने हाथ को हिलाने की कोशिश करता है, यह डिवाइस काम करने लगता है।
यह थेरेपी सिर्फ़ स्ट्रोक के बाद के शुरुआती महीनों के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी फ़ायदेमंद साबित हुई है जिन्हें स्ट्रोक आए हुए कई साल हो चुके हैं।
यही बात इस थेरेपी को इतना खास बनाती है।
एक सच्ची कहानी: जब 71 साल के एक रेस्तरां मालिक को मिली नई उम्मीद
यह बात दिसंबर 2023 की है जब 71 साल के एक रेस्तरां मालिक को स्ट्रोक आया।
स्ट्रोक की वजह से उनके शरीर का बायाँ हिस्सा प्रभावित हुआ और उन्हें चलने में काफी दिक्कत होने लगी।
वे ज्यादातर समय व्हीलचेयर में बिताते थे। उनके बाएँ हाथ की ताकत भी बहुत कम हो गई थी।
उन्होंने कुछ हफ्तों तक फिजियोथेरेपी भी करवाई, लेकिन उनके हाथ की हालत में कोई खास सुधार नहीं आया।
वे डॉ. मार्क बेन से मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि वे इस थेरेपी के लिए सही उम्मीदवार हैं।
स्ट्रोक के 16 महीने बाद, अप्रैल 2025 में उनकी सर्जरी हुई।
उनके गले में एक छोटा सा चीरा लगाकर डिवाइस लगाया गया और उसे छाती के ऊपरी हिस्से में स्किन के नीचे फिट कर दिया गया।
सर्जरी के बाद उन्हें कुछ दिनों तक गले में हल्का-सा सुन्नपन और निगलने में थोड़ी दिक्कत महसूस हुई, लेकिन उन्होंने कहा कि यह दर्दनाक नहीं था।
दो हफ्ते बाद, उन्होंने VNS के साथ अपनी फिजियोथेरेपी शुरू की। सिर्फ़ तीन हफ्तों की थेरेपी के बाद ही उन्होंने महसूस करना शुरू कर दिया कि उनके हाथ की हरकत में सुधार आ रहा है।
उन्होंने बताया कि अब वे अपने हाथ को पूरी तरह से हिला पाते हैं और कुछ छोटी-मोटी चीज़ें भी आसानी से उठा सकते हैं।
उनका कहना था कि अभी भी सुधार की गुंजाइश है, लेकिन उन्हें हर दिन फर्क महसूस हो रहा था।
अच्छी बात यह थी कि उनके पैर की स्थिति भी बेहतर हो रही थी और वे व्हीलचेयर के बजाय वॉकिंग स्टिक का इस्तेमाल करने लगे थे।
उनका सपना है कि वे अपने रेस्तरां में वापस जाकर खाना बनाने के कुछ छोटे-मोटे काम कर सकें।
इस थेरेपी ने उन्हें अपने इस सपने को पूरा करने की एक नई उम्मीद दी है।
VNS काम कैसे करता है?
इस थेरेपी के पीछे का विज्ञान बहुत ही दिलचस्प है।
इसका मुख्य काम न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देना है।
आसान शब्दों में कहें तो, यह हमारे दिमाग की खुद को ठीक करने और नई तंत्रिकाएँ (neurons) बनाने की क्षमता को बढ़ाती है।
जब वैगस नस को हल्की बिजली मिलती है, तो यह दिमाग के उन हिस्सों को जगाती है जो हाथ-पैर की हरकतों को कंट्रोल करते हैं।
यह एक तरह से दिमाग को एक सिग्नल देती है कि अब काम शुरू करना है।
थेरेपी सेशन के दौरान सही समय पर स्टिमुलेशन देने से दिमाग में नए कनेक्शन बनते हैं और पहले से मौजूद कनेक्शन मज़बूत होते हैं।
डॉक्टर्स का कहना है कि इसका असर सिर्फ़ स्ट्रोक से प्रभावित हिस्से तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे दिमाग पर असर डालता है।
कौन है VNS थेरेपी के लिए सही कैंडिडेट?
यह थेरेपी सभी के लिए नहीं है। एक मरीज़ को इस थेरेपी के लिए उपयुक्त माना जाता है अगर:
उन्हें इस्केमिक स्ट्रोक (Ischemic Stroke) हुआ हो: यह थेरेपी सिर्फ़ उस तरह के स्ट्रोक के लिए है जो दिमाग में खून की सप्लाई रुकने से होता है।
कम से कम 6 महीने हो गए हों: यह थेरेपी स्ट्रोक के तुरंत बाद नहीं दी जाती। मरीज़ को कम से कम 6 महीने का समय बीत चुका होना चाहिए।
मरीज़ में थोड़ी उम्मीद और प्रेरणा हो: VNS थेरेपी तभी काम करती है जब इसे कड़ी फिजियोथेरेपी के साथ किया जाए। अगर मरीज़ में ठीक होने की इच्छाशक्ति नहीं होगी, तो यह काम नहीं करेगी।
थोड़ी हरकत की क्षमता हो: यह थेरेपी हाथ-पैरों की ताकत को बढ़ाती है, पूरी तरह से लकवाग्रस्त हाथ में यह मदद नहीं कर सकती।
VNS की कीमत और उपलब्धता
यह थेरेपी अभी भी काफी नई है, खासकर स्ट्रोक के इलाज के लिए। इसलिए, यह हर जगह उपलब्ध नहीं है।
अमेरिका में: इस थेरेपी की कीमत काफी ज़्यादा है, जो लगभग $30,000 से $50,000 तक हो सकती है।
हालांकि, कुछ अस्पतालों में बीमा इसे कवर करता है। माउन्ट सिनाई जैसे बड़े अस्पताल इस थेरेपी को दे रहे हैं।
भारत में: भारत में VNS थेरेपी ज़्यादातर मिर्गी (epilepsy) के इलाज के लिए इस्तेमाल होती है।
स्ट्रोक रिकवरी के लिए इसकी उपलब्धता सीमित है, लेकिन कुछ बड़े न्यूरोसर्जरी सेंटर्स, जैसे कि दिल्ली-NCR और बेंगलुरु में, इस पर काम कर रहे हैं।
भारत में इस सर्जरी की अनुमानित लागत 2 लाख से 15 लाख रुपये तक हो सकती है, जो अस्पताल और शहर पर निर्भर करती है।
कुछ रिसर्च पेपर्स भारत में स्ट्रोक रिकवरी में इसके फ़ायदों पर भी अध्ययन कर रहे हैं।
निष्कर्ष: एक कम जोखिम वाला, ज़्यादा फ़ायदेमंद विकल्प
VNS एक बहुत ही सीधा, कम जोखिम वाला और छोटा-सा ऑपरेशन है।
VNS-REHAB नाम की एक बड़ी रिसर्च में यह साबित हुआ है कि अकेले थेरेपी के मुकाबले VNS थेरेपी के साथ सुधार की संभावना दोगुनी हो जाती है।
यानी, अगर फिजियोथेरेपी से 10% लोगों को फायदा हो रहा है, तो VNS के साथ यह 20% तक हो सकता है।
डॉक्टरों का मानना है कि यह थेरेपी उन लोगों के लिए एक बहुत ही बेहतरीन विकल्प है जो स्ट्रोक के बाद अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं।
यह उन्हें नई उम्मीद और एक नया मौका दे सकती है, खासकर तब जब उन्हें लगता है कि अब सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है।
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